हम बचपन से अपने बड़े-बुजुर्गों से सुनते और किताबों में पढ़ते आ रहे हैं कि ‘दो जून की रोटी’ बड़े नसीब वालों को मिलती है. इसके लिए लोगों को किस-किस तरह के जुगाड़ करने पड़ते हैं. और आज दो जून है, तो आज का दिन काफी ट्रेंड कर रहा है.
‘दो जून की रोटी’ आज की तारीख को लेकर नहीं कहा गया बल्कि, दो समय यानी रोज सुबह और शाम के भोजन के प्रबंध और इसमें आने वाली मुश्किलों तथा चुनौतियों को लेकर कही गई थी. फिर भी इस तारीख के आने से पहले ही सोशल मीडिया पर ‘दो जून की रोटी’ की ट्रेंड करने लगता है और लोग अपने-अपने अंदाज में इस पर रिएक्शन देते हैं. सोशल मीडिया पर लोग इस कहावतें और जोक्स की बौछार कर देते हैं.
क्या है दो जून का मतलब
दो जून का सीधा सा मतलब है कि एक दिन में दो समय का खाना मिलना.अवधि भाषा में वक्त को जून भी बोला जाता है. ऐसे में इसका मतलब दो समय यानी कि सुबह और शाम की रोटी/भोजन से है. जिनको दिन में दो वक्त का खाना मिलता है वह खुशनसीब कहे जाते हैं क्योंकि उन्हें ‘दो जून की रोटी’ मिल रही है.
जिनको मेहनत के बावजूद दोनों टाइम का खाना नहीं मिल पाता उनके लिए मुश्किल है. विशेषज्ञों के अनुसार, यह कहावत कोई साल दो साल या फिर दस-बीस साल से नहीं कही जा रही. यह बात हमारे पूर्वज बीते करीब छह सौ साल से प्रयोग कर रहे हैं.
सब के नसीब में नही दो जून की रोटी
कई दसको से सरकार देश में गरीबी मिटाने का प्रयास कर रही है.कितनी योजनाये इसके लिए आ रही है.लेकिन उसके बावजूद भी आज के समय करोड़ों लोग हैं, जिन्हें दो जून की रोटी तक नसीब नहीं होती है.करोड़ों-अरबों रुपये इन योजनाओं के जरिए गरीबी दूर करने के लिए होता रहा है. इसके बाद आज भी करोड़ों लोग है जिनको पर्याप्त भोजन नहीं मिल पाता है.
कोरोना काल में केंद्र सरकार ने सभी लोगों को दो जून की रोटी नसीब कराने के लिए मुफ्त में राशन मुहैया कराया था, जिसका फायदा करीब 80 करोड़ जनता को मिला था. साल 2017 में नेशनल फैमिली हेल्थ के सर्वे के मुताबिक भारत में 19 करोड़ लोग ऐसे हैं जिन्हें ‘दो जून की रोटी’ नहीं मिल पाती.