हिन्दू धर्म के कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को अहोई अष्टमी के नाम से जाना जाता है. यह दिन अहोई देवी को समर्पित है. अहोई यानी कि अनहोनी का अपभ्रंश, देवी पार्वती अनहोनी को टालने वाली देवी मानी गई है इसलिए इस दिन वंश वृद्धि और संतान के सारे कष्ट और दुख दूर करने के लिए मां पार्वती और सेह माता की पूजा की जाती है.
इस वर्ष अहोई अष्टमी पर तीन शुभ योग बन रहे हैं, जिससे यह व्रत और भी शुभता प्रदान करने वाला हो गया है. अहोई अष्टमी पर सर्वार्थ सिद्धि योग, शिव और सिद्ध योग बन रहे हैं. ये तीनों ही योग शुभ और मांगलिक कार्यों के लिए अच्छे माने जाते हैं. आइये जानते इस व्रत की पूजा विधि और शुभ मुहूर्त
अहोई अष्टमी का शुभ मुहूर्त
अष्टमी तिथि प्रारम्भ – अक्टूबर 17, 2022 को 09:29 AM बजे.
अष्टमी तिथि समाप्त – अक्टूबर 18, 2022 को 11:57 AM बजे.
अहोई अष्टमी पूजन मुहूर्त
अहोई अष्टमी पूजा मुहूर्त – 05:50 PM से 07:05 PM
अवधि – 01 घण्टा 15 मिनट्स
गोवर्धन राधा कुण्ड स्नान सोमवार, अक्टूबर 17, 2022 को
तारों को देखने के लिये शाम का समय – 06:13 PM
अहोई अष्टमी के दिन चन्द्रोदय समय – 11:24 PM
अहोई अष्टमी के शुभ योग
अहोई अष्टमी को शिव योग: 17 अक्टूबर, प्रात:काल से लेकर शाम 04 बजकर 02 मिनट तक
सिद्ध योग: शाम 04 बजकर 02 मिनट से अगले दिन शाम 04 बजकर 53 मिनट तक
सर्वार्थ सिद्धि योग: 18 अक्टूबर, प्रात: 05 बजकर 13 मिनट से प्रात: 06 बजकर 23 मिनट तक
अहोई अष्टमी की पूजा विधि
- दीवार पर अहोई माता की तस्वीर बनाएं.
- रोली, चावल और दूध से पूजन करें.
- इसके बाद कलश में जल भरकर माताएं अहोई अष्टमी कथा का श्रवण करती हैं.
- अहोई माता को पूरी और किसी मिठाई का भी भोग लगाया जाता है.
- इसके बाद रात में तारे को अघ्र्य देकर संतान की लंबी उम्र और सुखदायी जीवन की कामना करने के बाद अन्न ग्रहण करती हैं.
- इस व्रत में सास या घर की बुजुर्ग महिला को भी उपहार के तौर पर कपड़े आदि दिए जाते हैं.
आरती
जय अहोई माता, जय अहोई माता
तुमको निशदिन ध्यावत हर विष्णु विधाता।
जय अहोई माता
ब्राह्मणी, रुद्राणी, कमला तू ही है जग माता
सूर्य-चंद्रमा ध्यावत नारद ऋषि गाता।
जय अहोई माता
माता रूप निरंजनी सुख-सम्पत्ति दाता,
जो कोई तुमको ध्यावत नित मंगल पाता।
जय अहोई माता
तू ही पाताल बसंती, तू ही है शुभदाता
कर्म-प्रभाव प्रकाशक जगनिधि से त्राता।
जय अहोई माता
जिस घर थारो वासा वाहि में गुण आता,
कर न सके सोई कर ले मन नहीं धड़काता।
जय अहोई माता
तुम बिन सुख न होवे न कोई पुत्र पाता,
खान-पान का वैभव तुम बिन नहीं आता।
जय अहोई माता
शुभ गुण सुंदर युक्ता क्षीर निधि जाता,
रतन चतुर्दश तोकू कोई नहीं पाता।
जय अहोई माता
श्री अहोई मां की आरती जो कोई गाता,
उर उमंग अति उपजे पाप उतर जाता।
जय अहोई माता
बोलो अहोई माता की जय!
अहोई अष्टमी व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार एक साहूकार अपने सात पुत्रों और पत्नी के साथ रहता था. एक दिन साहूकार की पत्नी दिवाली से पहले घर के रंगरौंगन के लिए जंगल में पीली मिट्टी लेने गई थी. खदान में वह खुरपी से मिट्टी खोद रही थी तब गलती से मिट्टी के अंदर मौजूद सेह का बच्चा उसके हाथों मर गया. इस दिन कार्तिक माह की अष्टमी थी. साहूकार की पत्नी को अपने हाथों हुई इस हत्या पर पश्चाताप करती हुई अपने घर लौट आई.
कुछ समय बाद साहूकार के पहले बेटे की मृत्यु हो गई, अगले साल दूसरा बेटा भी चल बसा इसी प्रकार हर वर्ष उसके सातों बेटों का देहांत हो गया. साहूकार की पत्नी पड़ोसियों के साथ बैठकर विलाप कर रही थी. बार-बार यही कह रही थी कि उसने जान-बूझकर कभी कोई पाप नही किया. गलती से मिट्टी की खदान में मेरे हाथों एक सेह के बच्चे की मृत्यु हो गई थी.
औरतों ने साहूकार की पत्नी से कहा कि यह बात बताकर तुमने जो पश्चाताप किया है उससे तुम्हारा आधा पाप खत्म हो गया है. महिलाओं ने कहा कि उसी अष्टमी को तुम को मां पार्वती की शरण लेकर सेह ओर सेह के बच्चों का चित्र बनाकर उनकी आराधना करो. उनसे इस भूल की क्षमा मांगो. साहूकार की पत्नी ने ऐसा ही किया. हर साल वह नियमित रूप से पूजा और क्षमा याचना करने लगी. इस व्रत के प्रभाव से उसे सात पुत्रों की प्राप्ति हुई.
अहोई अष्टमी का महत्व
अहोई अष्टमी का व्रत महिलाए अपनी संतान की सुरक्षा, उत्तम स्वास्थ्य और उनके सुखी जीवन के लिए रखती हैं. इस दिन वे निर्जला व्रत रखती हैं और अहोई माता की विधि विधान से पूजा करती हैं.