Bhadrapada Sankashti Chaturthi: हिन्दू धर्म के मुताबिक, भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को बहुला चतुर्थी का व्रत रखा जाता है. इस वर्ष यह व्रत 15 अगस्त, दिन सोमवार को है. इस व्रत पर भगवान् श्री गणेश और श्री कृष्णा की पूजा की जाती है. यानी इस एक ही तिथि पर दो देवताओं की पूजा की जाती है. आइये जाने इस व्रत की कथा,पूजा विधि और महत्व क्या है.
बहुला चौथ का शुभ मुहूर्त
भाद्रपद कृष्ण चतुर्थी तिथि या बहुला चतुर्थी का प्रारंभ 14 अगस्त, रविवार को 10 बजकर 35 मिनट पर शुरू होकर 15 अगस्त रात 09 बजकर 01 मिनट तक होगी. उदयातिथि के आधार पर बहुला चतुर्थी का व्रत 15 अगस्त को रखा जाएगा. इस दिन पूजा का शुभ मुहू्र्त सुबह 11 बजकर 59 मिनट से लेकर 12 बजकर 52 मिनट तक है. ये अभिजीत मुहूर्त है. इस मुहूर्त को किसी कार्य के लिए बेहद शुभ माना जाता है.
बता दें कि इस दिन राहु काल 15 अगस्त की सुबह 07 बजकर 29 मिनट से लेकर 09 बजकर 08 मिनट तक रहेगा. शास्त्रों में कहा गया है कि पूजा के लिए राहु काल शुभ नहीं होता. इसलिए इस दिन राहुकाल से पहले या बाद में ही बहुला चतुर्थी की पूजा करें.
पूजा विधि
- इस दिन प्रातः जल्दी उठकर स्नान के बाद शुभ रंग के स्वच्छ कपड़े पहनें.
- महिलाएं पूरा दिन निराहार व्रत रखकर शाम के समय गाय और बछड़े की पूजा करती हैं.
- शाम को पूजा में कई तरह के पकवान बनाए जाते हैं जिन्हें भगवान गणेश और श्री कृष्ण को अर्पित किया जाता है.
- इस भोग को बाद में गाय और बछड़े को खिला दिया जाता है.
- पूजा के बाद दाएं हाथ में चावल के दाने लेकर बहुला चौथ की कथा सुननी चाहिए,तत्पश्चात गाय और बछड़े की प्रदिक्षणा कर सुख-शांति की प्रार्थना करें.
- गाय की पूजा करते हुए इन मंत्रो का करे उच्चारण –
क्षीरोदार्णवसम्भूते सुरासुरनमस्कृते।
सर्वदेवमये मातर्गृहाणार्घ्य नमो नम:॥
बहुला चौथ की व्रत कथा
विष्णु जी जब कृष्ण रूप में धरती में आये थे, तब उनकी बाल लीलाएं सभी देवी देवता को भाती थी. गोपियों के साथ उनकी रास लीला हो या माखन चोरी कर खाना, इन सभी बातों से वे सबका मन मोह लेते थे. कृष्ण जी लीलाओं को देखने के लिए कामधेनु जाति की गाय ने बहुला के रूप में नन्द की गोशाला में प्रवेश किया. कृष्ण जी को यह गाय बहुत पसंद आई, वे हमेशा उसके साथ समय बिताते थे. बहुला का एक बछड़ा भी था, जब बहुला चरने के लिए जाती तब वो उसको बहुत याद करता था.
एक बार जब बहुला चरने के लिए जंगल गई, चरते चरते वो बहुत आगे निकल गई, और एक शेर के पास जा पहुंची. शेर उसे देख खुश हो गया और अपना शिकार बनाने की सोचने लगा. बहुला डर गई, और उसे अपने बछड़े का ही ख्याल आ रहा था. जैसे ही शेर उसकी ओर आगे बढ़ा, बहुला ने उससे बोला कि वो उसे अभी न खाए, घर में उसका बछड़ा भूखा है, उसे दूध पिलाकर वो वापस आ जाएगी, तब वो उसे अपना शिकार बना ले. शेर ये सुन हंसने लगा, और कहने लगा मैं कैसे तुम्हारी इस बात पर विश्वास कर लूँ. तब बहुला ने उसे विश्वास दिलाया और कसम खाई कि वो जरुर आएगी.
बहुला वापस गौशाला जाकर बछड़े को दूध पिलाती है, और बहुत प्यार कर, उसे वहां छोड़, वापस जंगल में शेर के पास आ जाती है. शेर उसे देख हैरान हो जाता है. दरअसल ये शेर के रूप में कृष्ण होते है, जो बहुला की परीक्षा लेने आते है. कृष्ण अपने वास्तविक रूप में आ जाते है, और बहुला को कहते है कि मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हुआ, तुम परीक्षा में सफल रही. समस्त मानव जाति द्वारा सावन महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के दिन तुम्हारी पूजा अर्चना की जाएगी और समस्त जाति तुम्हे गौमाता कहकर संबोधित करेगी. कृष्ण जी ने कहा कि जो भी ये व्रत रखेगा उसे सुख, समृद्धि, धन, ऐश्वर्या व संतान की प्राप्ति होगी
क्या है बहुला चतुर्थी का महत्व
हिन्दू धर्म में ऐसा कहा जाता है की बहुला चतुर्थी व्रत संतान को मान-सम्मान और ऐश्वर्य प्रदान करने वाला होता है. नि:संतान दम्पति को संतान सुख की प्राप्ति होती है. इस व्रत को रखने से संतान को कष्टों से मुक्ति मिलती है और धन-धान्य में बढ़ोत्तरी होती है.
बहुला चतुर्थी व्रत से मिलेगी सुख समृद्धी
इस वर्ष संकष्टी चतुर्थी व्रत के दिन मीन राशि में गजकेसरी योग निर्मित हो रहा है. ज्योतिष में यह योग अति शुभकारी माना जाता है. शास्त्रों के अनुसार, जब ये योग बनता है तो शक्ति और समृद्धि में अपार वृद्धि होती है. ऐसे योग में संकष्टी चतुर्थी व्रत का पूजा करने से सुख-समृद्धि और शांति में बढ़ोत्तरी होती है.