भारत के इतिहास में आचार्य विनोबा भावे की बहुत ही बड़ी भूमिका रही है. और आज भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, सामाजिक कार्यकर्ता, महान विचारक तथा प्रसिद्ध गांधीवादी नेता आचार्य विनोबा भावे की आज जयंती है. आचार्य विनोबा भावे की ख्याति भारत में भूदान तथा सर्वोदय आंदोलन के प्रणेता के रूप में रही है। वह गांधीजी की तरह ही अहिंसा के पुजारी थे.
आचार्य विनोबा भावे का जन्म, 11 सितंबर, 1895 को महाराष्ट्र के कोलाबा ज़िले के गागोड गांव में, एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था. उनका मूल नाम, विनायक नरहरि भावे था. इनके पिताजी का नाम विनायक नरहरि शंभू राव और माता जी का नाम रुक्मिणी देवी था. आचार्य विनोबा चार भाई बहन थे जिनमे विनायक सबसे बड़े थे. इनकी माताजी धार्मिक चीजों से बहुत प्रभावित इसलिए इनको श्रीमद् भागवत गीता बचपन में ही पढ़ने का मौका मिला.
विनोबा भावे (Acharya Vinoba bhave) ने रामायण, कुरान, बाइबल, गीता जैसे अनेक धार्मिक ग्रंथों का, गहन अध्ययन किया. वह एक कुशल राजनीतिज्ञ, और अर्थशास्त्री भी थे. उनका संपूर्ण जीवन साधू, सन्यासियों व तपस्वी की तरह बीता. इसी कारण, उनको संत कहकर संबोधित किया जाने लगा.
विनोबा भावे इंटर की परीक्षा देने के लिए 25 मार्च, 1916 को मुंबई जाने वाली रेलगाड़ी में सवार हुए, परंतु उस समय उनका मन स्थिर नहीं था. उन्हें लग रहा था, कि वह जीवन में जो करना चाहते हैं, वह डिग्री द्वारा प्राप्त नहीं किया जा सकता. उनके जीवन का लक्ष्य, कुछ और ही था. अभी उनकी गाड़ी सूरत पहुंची ही थी, कि उनके मन में हलचल होने लगी. गृहस्थ जीवन या सन्यास, उनका मन दोनों में से किसी एक को नहीं चुन पा रहा था. तब थोड़ा विचार करने के बाद, उन्होंने संन्यासी बनने का निर्णय लिया, और हिमालय की ओर जाने वाली गाड़ी में सवार हो गए. 1916 में मात्र 21 वर्ष की आयु में, उन्होंने घर छोड़ दिया और साधु बनने के लिए, काशी नगरी पहुंच गए. वहां पहुंचकर, उन्होंने महान पंडितों के सानिध्य में, शास्त्रों का गहन अध्ययन किया.
विनोबा भावे और भूदान आंदोलन
कहानी सन् 1958 की है, जब तेलंगाना के पोचमपल्ली गांव के हरिजनों ने विनोबा भावे से अपने जीवन यापन के लिए 80 एकड़ भूमि देने का अनुरोध किया तब आचार्य विनोबा भावे ने जमींदारों से आगे आकर गरीबों को भूमि दान करने के लिए कहा इसे भूदान आंदोलन कहा गया.
इसी से भूदान आंदोलन की शुरुआत हुई भूदान का अर्थ भूमि को उपहार में दे देना होता है. उन्होंने इस आंदोलन से 44 लाख एकड़ भूमि दान में ली और उससे लगभग 13 लाख गरीबों की मदद की. इस भूदान आंदोलन से उन्होंने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी तरफ खींचा.
विनोबा भावे की स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका
- इन्होंने गांधीजी द्वारा चलाए गए सभी आंदोलनों में भाग लिया.
- असहयोग आंदोलन में इन्होंने सभी से विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार और उनका साथ छोड़ने का आव्हान किया.
- इनको गांधीजी ने 1940 में पहले सत्याग्रही के रूप में भी चुना गया.
- इन्हे स्वतंत्रता संग्राम के लिए 1930 से लेकर 1940 में कई बार जेल में जाना पड़ा.
- 1959 में उन्होंने, महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए, ब्रह्म विद्या मंदिर की स्थापना की.
- विनोबा भावे को 1983 में मरणोपरांत भारत रत्न पुरस्कार दिया गया.
विनोबा भावे लेखनी में भी काफी रुचि रखते थे और उनकी मराठी, हिन्दी, अंग्रेजी, संस्कृत, गुजराती जैसी कई भाषाओं पर मजबूत पकड़ थी. उन्होंने स्वराज्य शास्त्र, गीता प्रवचन और तीसरी शक्ति जैसी कई महत्वपूर्ण किताबें लिखी.
नवंबर 1982 में विनोबा भावे, गंभीर रूप से बीमार हो गए और उन्होंने, अपने जीवन को त्यागने का फैसला किया. उन्होंने जैन धर्म के संलेखना-संथारा के रूप में, भोजन और दवा को त्याग दिया और इच्छा पूर्वक, मृत्यु को अपनाने का निर्णय लिया. 15 नवंबर, 1982 को विनोबा भावे ने, दुनिया को अलविदा कह दिया.