कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष चतुर्थी तिथि से आरंभ होने वाला महापर्व छठ को लोग बहुत ही हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं. छठ के दौरान एक अलग ही प्रकार माहौल बन जाता है वैसे तो मुख्य रूप से छठ पूजा का पर्व बिहार, झारखंड, और उत्तर प्रदेश की कई जगहों पर मनाया जाता है लेकिन अब यह पर्व एक ऐसा पर्व बन चुका है जिसकी आस्था देश से लेकर विदेशों तक देखने को मिलती है. यह व्रत अत्यंत कठिन माना जाता है. इस दौरान महिलाएं और पुरुष लगभग 36 घंटे तक निर्जला व्रत रखते हैं. छठ व्रत में बहुत सारी सामाग्री की आवश्यकता होती है और बहुत सी बातों को ध्यान में रखना होता है. अगर आप पहली बार व्रत कर रहे है तो आप को इस व्रत की पूजा विधि और पूजा सामग्री के बारे में जान ले –
छठ व्रत पूजन सामग्री
अगर आप पहली बार छठ का व्रत कर रहे है तो आप को अपनी पूजा सामग्री में छठ का प्रसाद रखने के लिए बांस की दो तीन बड़ी टोकरी, पूजन के समय फल, प्रसाद आदि रखने के लिए बांस का बना सूप, दूध और ग्लास लाल सिंदूर, अगोला (हरे पत्ते, गन्ने का आगे का भाग) सहित गन्ना, थाली, अर्घ्य देने के लिए लोटा, चावल, सुथनी फल व शकरकंद डाभ (बड़ा वाला मीठा नींबू), सिंघाड़े, नारियल, साबुत पूजा सुपारी, हल्दी का हरा पौधा या फिर हल्दी, शहद, कपूर, चंदन और मिठाई पारंपरिक तरीके से बना ठेकुआ का प्रसाद, मालपुआ, खीर-पुड़ी, सूजी का हलवा, चावल के बने लड्डू ,धूप-दीप आदि.
छठ व्रत की पूजा विधि
छठ महापर्व के पहले दिन नहाय खाय की परम्परा के साथ व्रत के नियम आरंभ हो जाते है. इस छठ पर्व के पहले दिन औरते प्रात: सूर्योदय से पहले उठकर घर की सफाई इत्यादि करके स्नान करती है. उसके बाद भगवान सूर्य को जल का अर्घ्य देती है और व्रत का संकल्प करती है इस दिन व्रत रखने वाली सभी औरते सात्विक भोजन ग्रहण करती है जैसे- चना, दाल, लौकी की सब्जी, भात खाती है. इन सभी में सेंधा नमक का उपयोग करे.
व्रत के दूसरे दिन खरना के नाम से होता है. खरना का अर्थ तन व मन से शुद्धिकरण होता है. इस दिन पूरे दिन व्रत किया जाता है और शाम को मिट्टी के चूल्हे पर आम की लकड़ी जलाकर गुड़ व चावल की खीर बनाकर छठी मईया को अर्पित की जाती है और अस्तचलगामी सूर्य को प्रथम अर्घ्य दिया जाता है. इस खीर को प्रसाद के रूप में ग्रहण करने के पश्चात छठ के कठिन व्रत का आरंभ हो जाता है. यह व्रत कुल 36 घंटो तक निर्जला व्रत पवित्र तरीके से किया जाता है.
छठ महापर्व के तीसरे दिन छठी माता व भगवान सूर्य देव की पूजा करने का विधान होता है इसी लिए व्रत रखने वाली सभी औरते सूर्यास्त में जब सूर्य डूबता रहता है तो उस समय किसी पवित्र नदीं या तालाब के किनारे सूर्य भगवान को जल का अर्घ्य देती है.
इस महापर्व के चौथे दिन व्रत रखने वाली सभी औरते किसी पवित्र नदी या तालाब के पानी में खड़े होकर उगते हुये सूर्य देव को जल का अर्घ्य देती है. और अपने छठ पूजा व्रत का समापन करती है उसके बाद सभी महिलाएं छठ महापर्व व्रत का पारण कर सकती है.
छठ व्रत की कथा
एक पौराणिक कथा के अनुसार प्रियव्रत नाम के एक राजा थे. उनकी पत्नी का नाम मालिनी था. दोनों के कोई संतान नहीं थी. इस वजह से दोनों दुःखी रहते थे. एक दिन महर्षि कश्यप ने राजा प्रियव्रथ से पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ करने को कहा. महर्षि की आज्ञा मानते हुए राजा ने यज्ञ करवाया, जिसके बाद रानी ने एक सुंदर पुत्र को जन्म दिया लेकिन दुर्भाग्यवश वह बच्चा मृत पैदा हुआ. इस बात से राजा और दुखी हो गए.
उसी दौरान आसमान से एक विमान उतरा जिसमें माता षष्ठी विराजमान थीं. जब राजा के प्रार्थना करने पर उन्होंने अपना परिचय दिया. उन्होंने बताया कि मैं ब्रह्मा की मानस पुत्री षष्ठी हूं. मैं संसार के सभी लोगों की रक्षा करती हूं और निःसंतानों को संतान प्राप्ति का वरदान देती हूं. तभी देवी ने मृत शिशु को आशीर्वाद देते हुए हाथ लगाया, जिससे शिशु पुन: जीवित हो गया. देवी की इस कृपा से राजा बेहद खुश हुए और षष्ठी देवी की आराधना की. इसके बाद से ही इस पूजा का प्रसार हो गया.
पांडव पत्नी द्रौपदी ने रखा व्रत, तो पांड्वो को मिला राजपाट
एक अन्य कथा के अनुसार, पांडव जब अपना सारा राजपाट जुए में हार गए थे. तब द्रौपदी ने पांडवों को राजपाट वापस दिलाने की मनोकामना के साथ छठ व्रत किया, जिसके प्रभाव से पांडवों को पुन: राजपाट वापस मिल गया.
छठ व्रत पूजा का महत्व
छठ पूजा धार्मिक और सांस्कृतिक आस्था का लोकपर्व है. यही एक मात्र ऐसा त्योहार है जिसमें सूर्य देव का पूजन कर उन्हें अर्घ्य दिया जाता है. हिन्दू धर्म में सूर्य की उपासना का विशेष महत्व है. वे ही एक ऐसे देवता हैं जिन्हें हम देख सकते है. वेदों में सूर्य देव को संसार की आत्मा कहा जाता है. सूर्य के प्रकाश में कई रोगों को नष्ट करने की क्षमता पाई जाती है. सूर्य के शुभ प्रभाव से व्यक्ति को आरोग्य, तेज और आत्मविश्वास की प्राप्ति होती है. वैदिक ज्योतिष में सूर्य को आत्मा, पिता, पूर्वज, मान-सम्मान और उच्च सरकारी सेवा का कारक कहा गया है. छठ पूजा पर सूर्य देव और छठी माता के पूजन से व्यक्ति को संतान, सुख और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है.