Monday, March 27, 2023
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Jagannath Rath Yatra 2022: जानिए कब क्यों और कहाँ होती है रथ यात्रा

हमारा भारत देश अनेकों प्रकार की धार्मिक मान्यताओं से घिरा पड़ा है. हमारे देश के प्रत्येक हिंदू धर्म के लोग पूजा पाठ एवं सभी धर्मों में अपनी आस्था रखते हैं. हमारे देश में माना जाता है, कि पूजा पाठ एवं धार्मिक अनुष्ठानों में अपना महत्वपूर्ण सहयोग प्रदान करके आप सीधे प्रभु की सेवा जैसे कार्यों को संपन्न करते हैं.उसी त्योहारों में एक भगवान कृष्णा का त्यौहार रथ यात्रा है. 

क्या है रथयात्रा और कब मनाई जाती है 

भारत के उड़ीसा राज्य के जगन्नाथ पुरी नामक स्थान पर भगवान श्री कृष्ण उनकी बहन सुभद्रा और उनके भाई बलराम जी की विशाल रथयात्रा निकाली जाती है. रथ यात्रा के पावन उत्सव के दिन हमारे देश के आलावा अन्य देशों से भी लोग बड़ी संख्या में जगरनाथ पुरी धाम में उपस्थित होते हैं और भगवान श्री कृष्ण की रथ यात्रा को अपना सहयोग प्रदान करके, सीधे भगवान श्री कृष्ण का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं.

हिंदू कैलेंडर के अनुसार हर साल जगन्ना​थ रथ यात्रा का प्रारंभ आषाढ़ शुक्ल द्वितीया से होता है. भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ गुंडिचा मंदिर में रहते हैं. धार्मिक मान्यता के अनुसार, वहां पर उनकी मौसी का घर है. पारंपरिक तौर पर रथ यात्रा के पहले दिन तीनों रथों को गुंडिया मंदिर ले जाया जाता है. इन रथों को मोटे रस्सों से खींचा जाता है. इस साल यह रथयात्रा 01 जुलाई से प्रारंभ हो गई है जो 12 जुलाई तक चलेगी.

रथ यात्रा की पौराणिक कथाएं

रथ यात्रा की शुरुआत को लेकर कुछ पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं जो लोगों की सामाजिक-धार्मिक मान्यताओं को दर्शाती हैं. ऐसी ही एक कहानी के अनुसार कृष्ण के मामा कंस, कृष्ण और उनके बड़े भाई बलराम को मारना चाहते थे. इस आशय से कंस ने कृष्ण और बलराम को मथुरा आमंत्रित किया था. उसने अक्रूर को अपने रथ के साथ गोकुल भेजा. पूछने पर, भगवान कृष्ण बलराम के साथ रथ पर बैठ गए और मथुरा के लिए रवाना हो गए. भक्त कृष्ण और बलराम के मथुरा जाने के इसी दिन को रथ यात्रा के रूप में मनाते हैं. जबकि द्वारका में भक्त उस दिन का जश्न मनाते हैं जब भगवान कृष्ण, बलराम के साथ, उनकी बहन सुभद्रा को रथ में शहर की शान और वैभव दिखाने के लिए ले गए थे.

भगवान को 108 घड़ों से स्नान कराया जाता है

सनातन धर्म में जगन्नाथ पुरी की रथयात्रा (Puri Rath Yatra) का बड़ा महत्व है. यह रथ यात्रा हर वर्ष बड़े हर्षोल्लास के साथ निकाली जाती है. इसमें लाखों की संख्या में भक्तगण शामिल होते हैं. जगन्नाथ का अर्थ होता है जगत के स्वामी. रथ यात्रा निकालने से पूर्व सनातन धर्म की परंपरा के अनुसार भगवान जगन्नाथ, बलराम जी और सुभद्रा जी को 108 घड़ों के जल से स्नान कराया जाता है. इसे सहस्त्रधारा स्नान के नाम से जाना जाता है. ऐसी मान्यता है कि 108 घरों के ठंडे जल से स्नान करने के बाद तीनों देवता बीमार हो जाते हैं. इसलिए वह एकांतवास में चले जाते हैं.

मंदिर का कपाट 15 दिनों के लिए बंद कर दिया जाता है जिससे देवता गण को आराम मिल सके. उसके बाद भव्य रथयात्रा ( Rath Yatra ) निकाली जाती है. जिससे लोग भगवान के दर्शन का लाभ प्राप्त कर सकें.

क्या है रथ यात्रा का महत्व 

भगवान जगन्नाथ की भव्य और विशाल रथ यात्रा पुरी की सड़कों पर निकाली जाती है.यात्रा में बलभद्र का रथ सबसे आगे रहता है जिसे तालध्वज कहा जाता है.साथ ही सुभद्रा के रथ को दर्पदलन या पद्म रथ कहा जाता है जो कि बीच में चलता है.इसके अलावा भगवान जगन्नाथ के रथ को नंदी घोष या गरुड़ ध्वज कहा जाता है, जो रथ यात्रा में सबसे अंत में चलता है. 

सबसे पहले भगवान जगन्नाथ प्रसिद्ध गुंडिचा माता मंदिर में जाते हैं. यह रथ यात्रा केवल भारत में ही नहीं बल्कि दुनियाभर में एक प्रसिद्ध पर्व के रूप में मनाया जाता है. साथ ही विश्वभर के श्रद्धालु इस यात्रा में भाग लेते हैं.रथ यात्रा से एक दिन पहले गुंडिचा माता मंदिर भगवान जगन्नाथ के आराम के लिए साफ-सुथरा किया जाता है.इसे गुंडिचा मार्जन कहा जाता है. सफाई के लिए जल सरोवर से लाया जाता है.

धार्मिक दृष्टिकोण से पुरी रथ यात्रा विष्णु के अवतार भगवान जगन्नाथ को समर्पित है. हिन्दू धर्म की आस्था का मुख्य केंद्र होने से इस रथ यात्रा का महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है. कहते हैं जो भक्त सच्ची श्रद्धा के साथ इस रथ यात्रा में शामिल होते हैं उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है.सांस्कृतिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो इस रथ यात्रा को पुरी कार फेस्टिवल के नाम से भी जाना जाता है.

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