Monday, November 28, 2022
HomeDharmJivitputrika Vrat 2022: जीवित्पुत्रिका व्रत से जुड़ी हर जानकारी यहां देखें, पूजन...

Jivitputrika Vrat 2022: जीवित्पुत्रिका व्रत से जुड़ी हर जानकारी यहां देखें, पूजन विधि के साथ शुभ मुहूर्त और पारण का समय जानें

हिन्दू धर्म में जीवित्पुत्रिका व्रत सबसे कठिन व्रतो में माना गया है. आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर प्रत्येक वर्ष जीवित्पुत्रिका व्रत रखा जाता है. इस व्रत का आरंभ  सप्तमी तिथि से ही हो जाता है और नवमी तिथि पर इस व्रत का पारण किया जाता है. यह उपवास माताएं अपने संतान की लंबी उम्र और सुखी जीवन के लिए रखती हैं. जानें इस वर्ष जीवित्पुत्रिका व्रत कब है और इसका नाम जीवित्पुत्रिका क्यों पड़ा.

जीवित्पुत्रिका व्रत कब है, शुभ मुहूर्त क्या है

जीवित्पुत्रिका के व्रत को जिउतिया और जीमूतवाहन व्रत के नाम से भी जाता है. इस वर्ष 17 सितंबर यानी आज नहाए-खाय की तिथि है. कल यानी 18 सितंबर को निर्जला व्रत किया जाएगा और परसों व्रत का पारण होगा.

शुभ मुहूर्त

अष्टमी तिथि प्रारम्भ – सितम्बर 17, 2022 को शाम 02 बजकर 14 मिनट से

अष्टमी तिथि समाप्त – सितम्बर 18, 2022 को शाम  04 बजकर 32 मिनट तक

उदयातिथि के अनुसार जीवित्पुत्रिका व्रत 18 सितंबर 2022 को रखा जाएगा. इस व्रत का पारण 19 सितंबर 2022 को किया जाएगा.

व्रत पारण समय – सुबह 6.10 के बाद (19 सितंबर 2022)

जीवित्पुत्रिका व्रत की पूजा विधि

जीवित्पुत्रिका व्रत के प्रथम दिन महिलाओ को जल्दी उठकर सूर्याेदय से पहले स्नान करना चाहिए हैं. इसके बाद महिलाएं भोजन ग्रहण करती हैं और उसके बाद पूरे दिन वो कुछ भी नहीं खाती. इस व्रत के दूसरे दिन सुबह स्नान के बाद महिलाएं पहले पूजा पाठ करती हैं और फिर पूरा दिन निर्जला व्रत रखती हैं. अष्टमी को प्रदोष काल में महिलाएं जीमूतवाहन की पूजा करती है. इसके लिए गाय के गोबर से पूजा स्थल साफ कर एक छोटा तालाब बनाया जाता है. फिर जीमूतवाहन की प्रतिमा जल में स्थापित करके पूजा शुरू की जाती है. पूजा में धूप, दीप, अक्षत, फूल, माला अर्पित कर पूजा की जाती है. प्रतिमा पर सिंदूर का टीका लगाया जाता है. कहते हैं इससे मनचाहा वरदान मिलता है. अंत में जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा सुनी जाती है. इस व्रत का पारण तीसरे दिन सुबह में होता है पारण से पहले महिलाएं सूर्य को अर्घ्य देती हैं, जिसके बाद ही वह कुछ खाना खा सकती हैं.

जीवित्पुत्रिका व्रत 2022 महत्व

हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार जीवित्पुत्रिका व्रत का संबंध महाभारत काल से माना जाता है. महाभारत युद्ध में जब द्रोणाचार्य का वध कर दिया गया तो उनके पुत्र आश्वत्थामा ने क्रोध में आकर ब्राह्रास्त्र चल दिया जो कि अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहा शिशु नष्ट हो गया. तब भगवान कृष्ण ने इसे पुनः जीवित किया. इस कारण इसका नाम जीवित्पुत्रिका रखा गया. तभी से माताएं इस व्रत को पुत्र के लंबी उम्र की कामना से करने लगी. मान्यता है कि इस व्रत से संतान की प्राप्ति होती है और उनके सुख समृद्धि में वृद्धि होती है.

जीवित्पुत्रिका व्रत के नियम

इस व्रत को कभी बीच में नहीं छोड़ना चाहिए. एक बार उपवास रखने पर हर वर्ष व्रत रखना चाहिए. खाने में लहसुन, प्याज,या मांसाहार का सेवन नहीं करना चाहिए. जीवित्पुत्रिका व्रत निर्जल होता है, इसलिए जल की एक बूंद भी ग्रहण न करें. इस दौरान मन को शांत रखें और किसी से भी लड़ाई-झगड़ा ना करें.

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -

Most Popular

Recent Comments