आज की युवा पीढ़ी को दूरदर्शन का मतलब शायद ही पता हो, लेकिन पिछली पीढ़ी का दूरदर्शन के साथ गहरा नाता रहा है. छोटे से पर्दे पर चलती-बोलती तस्वीरें दिखाने वाला बिजली से चलने वाला यह डिब्बा लोगों के लिए कौतुहल का विषय था, जिसके घर में टेलीविजन होता था, लोग दूर-दूर से उसे देखने आते थे. छत पर लगा टेलीविजन का एंटीना मानो प्रतिष्ठा का प्रतीक हुआ करता था और देश की कला और संस्कृति से जुड़े कार्यक्रम इस सरकारी प्रसारण सेवा का अभिन्न अंग थे. लोगों के लिए मनोरंजन की पहली खुराक साबित होने वाला दूरदर्शन 1959 को आज ही के दिन यानी 15 सितंबर से शुरू हुआ था. दरअसल, तब 15 सितंबर 1959 को सरकारी प्रसारक के तौर पर दूरदर्शन की स्थापना हुई थी. धीरे-धीरे समय के साथ दूरदर्शन ने भी कई रूप बदले और अब जमाना डीटीएच का आ गया है.
दूरदर्शन के गौरव से जुड़े कुछ खास तथ्यों के बारे में
जब दूरदर्शन की शुरुआत हुई थी, उस समय का प्रसारण हफ्ते में सिर्फ तीन दिन आधा-आधा घंटे होता था. पहले इसका नाम ‘टेलीविजन इंडिया’ दिया गया था बाद में 1975 में इसका हिन्दी नामकरण ‘दूरदर्शन’ नाम से किया गया. 1975 तक यह सिर्फ 7 शहरों तक ही सीमित था. दूरदर्शन की विकास यात्रा प्रारंभ में काफी धीमी रही लेकिन 1982 में रंगीन टेलीविजन आने के बाद लोगों का रूझान इस ओर ज्यादा बढ़ा. इसके बाद एशियाई खेलों के प्रसारण ने इस दिशा में क्रांति ही ला दी. 2 राष्ट्रीय और 11 क्षेत्रीय चैनलों के साथ दूरदर्शन के कुल 21 चैनल प्रसारित होते हैं. 14 हजार जमीनी ट्रांसमीटर और 46 स्टूडियो के साथ यह देश का सबसे बड़ा प्रसारणकर्ता है.
1966 में कृषि दर्शन कार्यक्रम के जरिए दूरदर्शन देश में हरित क्रांति लाने का सूत्रधार बना. कृषि दर्शन सबसे लंबा चलने वाला दूरदर्शन का कार्यक्रम है. हम लोग, बुनियाद, नुक्कड़, रामायण, महाभारत जैसे कार्यक्रमों ने दूरदर्शन की लोकप्रियता को बुलंदियों पर पहुंचाया. 1986 में शुरू हुए ‘रामायण’ और इसके बाद शुरू हुए ‘महाभारत’ के प्रसारण के दौरान हर रविवार को सुबह देश भर की सड़कों पर कर्फ्यू जैसा सन्नाटा पसर जाता था. और लोग सड़कों पर अपनी यात्रा ‘रामायण’ और ‘महाभारत’ के प्रसारण के दौरान नहीं करते थे. अगर विज्ञापनों की बात करें तो ‘मिले सुर मेरा तुम्हारा’ जहां लोगों को एकता का संदेश देने में कामयाब रहा, वहीं बुलंद भारत की बुलंद तस्वीर-हमारा बजाज से अपनी व्यावसायिक क्षमता का लोहा भी मनवाया.