Sunday, November 20, 2022
HomeEntertainmentMaja Ma Review: लोगो को खुश करने में फेल रही माधुरी दीक्षित की...

Maja Ma Review: लोगो को खुश करने में फेल रही माधुरी दीक्षित की ‘माजा मा’, माधुरी के होने पर भी मजा कम और टेंशन ज्यादा

बॉलीवुड की एवरग्रीन अदाकारा माधुरी दीक्षित और ‘बधाई हो’ फेम गजराज राव की फिल्म ‘माजा मा’ ओटीटी प्लेटफॉर्म अमेजन प्राइम पर रिलीज हो चुकी है. इस मूवी में माधुरी दीक्षित के निडर और जटिल अवतार को दिखने की कोशिश की गई है जो सफल होती नहीं दिखाई दे रही है. इस फैमिली एंटरटेनर में इंडस्ट्री के अनुभवी के साथ-साथ नए चेहरों से सजी शानदार स्टारकास्ट मौजूद है. कलाकारों में गजराज राव, ऋत्विक भौमिक, बरखा सिंह, सृष्टि श्रीवास्तव, रजित कपूर, सिमोन सिंह, शीबा चड्ढा, निनाद कामत जैसे कलाकार शामिल हैं.

क्या है फिल्म माजा मा की कहानी

तेजस ( ऋत्विक भौमिकन) अमेरिका में पढ़ाई कर रहा है, वहीं पर एक लड़की से प्यार भी कर बैठा है, नाम है सुशु (बर्खा सिंह). सुशु का परिवार कहने को खुद को अब पूरी तरह अमेरिकी मानता है, लेकिन जड़े क्योंकि हिंदुस्तानी हैं, ऐसे में अपनी लड़की के लिए ऐसा रिश्ता ढूंढ रहा है जो संस्कारी हो, जो भारत की संस्कृति के बेहद करीब हो. इन्हीं मापदंडों पर कुछ परीक्षाएं पास करने के बाद तेजस फिट बैठ जाता है. अब लड़की के माता-पिता रिश्ते के लिए मान गए हैं, लेकिन तेजस के परिवार से मिलना बाकी है, ऐसे में अमेरिका से मजे मा की कहानी हिंदुस्तान दस्तक देती है और हमारी मुलाकात पल्लवी (माधुरी दीक्षित), मनोहर (गजराज राव), तारा ( सृष्टि श्रीवास्तव) से होती है. ये तेजस का परिवार है- मां पल्लवी डांस सिखाती है, पिता मनोहर अपनी सोसाइटी के प्रेसिडेंट हैं और बहन तारा एक सामाजिक कार्यकर्ता.

अब आगे की कहानी पल्लवी और उसके बेटे तेजस के इर्द-गिर्द ज्यादा घूमती है. पल्लवी की जिंदगी के कुछ ऐसे राज हैं, जो एक वायरल वीडियो के जरिए सभी के सामने आ जाते हैं. ये राज ऐसे हैं जिन्हें समाज आसानी से या कह लीजिए खुले दिमाग से स्वीकार नहीं कर सकता है. वो राज ही तेजस के शादी के सपनों के बीच आ जाते हैं. अब खुद पल्लवी कैसे उन राज से डील करती है, उसका परिवार उसका कितना साथ देता है, समाज उसे किस नजरिए से देखता है, मजे मा इन्हीं सवालों के जवाब 134 मिनट में टटोलती दिख जाती है.

माजा मा मूवी रिव्यू

इस मूवी का रिव्यू जानने से पहले आपको इस फिल्म के ट्रेलर पर जाना होगा. आपको याद होगा जब ‘माजा मा’ का ट्रेलर रिलीज हुआ था, तो उसे देखकर कहानी काफी दिलचस्प लग रही थी, लग रहा था कि हर सीन में कॉमेडी होगी, एक फन एलिमेंट होगा, ये तो सभी सोचकर बैठ गए थे. मजे मा का गुजराती में मतलब भी क्योंकि मस्ती में रहना होता है, तो और ज्यादा लगने लगा था कि फुल ऑन एंटरटेनमेंट होने वाला है. लेकिन अब जब फिल्म रिलीज हो गई है, वो सभी उम्मीदें टूटी हैं. इसे पॉजिटिव, निगेटिव कैसे भी ले सकते हैं, क्युकी जैसा ट्रेलर में दिखाया गया है वैसा कुछ भी फिल्म में देखने को नहीं मिल रहा है. 

समलैंगिक अधिकारों के लिए लडती फिल्म 

फिल्म को आधा देखने के बाद पता चलता है कि यह फिल्म पारिवारिक स्त्री के स्वतंत्र अस्तित्व की वकालत करते हुए, समलैंगिकों के जीवन को केंद्र में ले आती है. तब पता चलता है कि ‘मजा मा’ का असली मुद्दा समलैंगिकों के अधिकारों, समाज में उनकी स्वीकृति और उन्हें खुल कर अपनी पहचान के साथ बिना किसी शर्म-झिझक के जीने देने का है. यह भी सही है, परन्तु फिल्म का यह मुद्दा समाज में कितनो के लिए कड़वी गोली है, जिस पर निर्देशक आनंद तिवारी और राइटर सुमित बथेजा ने माधुरी दीक्षित के नाम का मीठा लेप चढ़ने की कोशिश की है. परन्तु फिल्म किसी भी ओर से लोगो को एंटरटेन नहीं करती बल्कि कई मुद्दे बोर करने लगते है. वजह है, कच्ची कहानी, कमजोर केरेक्टराइजेशन और खराब स्क्रिप्ट राइटिंग. डायलॉग्स की बात तो छोड़ ही दीजिए.

माधुरी दीक्षित घुल गई है अपने किरदार में

फिल्म में कुछ रिश्तों को खूबसूरती से स्क्रीन पर उतारा है. फिर चाहे वो मां-बेटे के रूप में माधुरी दीक्षित और ऋत्विक का रिश्ता हो, या फिर माधुरी और गजराज राव का पति-पत्नी वाला रोल. लगभग पुरी फिल्म माधुरी दीक्षित के किरदार पर फोकस करती है. वह अपनी आंखों से भावनाएं जाहिर करने में माहिर हैं और यह आपको अच्‍छा भी लगता है. गजराज राव ने भी पूरी सहजता से मनोहर की भूमिका को निभाया है. वह इस किरदार के लिए फिट हैं. अच्‍छे लगते हैं, तेजस के रोल में ऋत्विक भौमिक और तारा के किरदार में सृष्टि श्रीवास्तव अपने कैरेक्‍टर के इमोशन को समझा और उसके साथ न्‍याय किया है. बाकी किरदारों में सिमोन सिंह, रजि‍त कपूर, शीबा चड्ढा, बरखा सिंह को अपने किरदारों में कुछ और दम लगाने की जरूरत थी.

देखे की ना देखे

यह फिल्म आधे घंटे के अंदर बोर करने लगेगी और फिर बोरियत टेंशन में बदल जाती है. जिससे धीरे धीरे फिल्म का मजा खो देती है. माधुरी दीक्षित के कुछ सीन अच्छे लगे हैं. गरबा प्रधान और म्यूजिकल बताए जाने के बावजूद फिल्म का गीत-संगीत फीका है. त्यौहार के इस मौसम में परिवार के साथ देखने जैसा कुछ नहीं है फिल्म में.

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -

Most Popular

Recent Comments