नवरात्रि का पर्व 26 सितंबर से आरंभ हुआ था जो कल यानि 5 अक्टूबर को विजय दशमी के दिन समाप्त हो जायेगी. इस वर्ष पूरे नौ दिनों के नवरात्र पड़े है. इन नौ दिनों में मां दुर्गा के नौ रूपों की पुरे हर्षोल्लास और विधि विधान से पूजा अर्चना की जाती है. नवरात्रि के प्रथम दिन जो कलश स्थापना करते है वो भक्त नवमी को व्रत को पूर्ण कर कलश का विसर्जन करते है. इसके साथ ही अंतिम दिन मां दुर्गा की पूजा के साथ हवन किया जाता है. कई जगहों पर महाअष्टमी, नवमी तो कहीं पर दशमी यानी दशहरा के दिन विसर्जन किया जाता है. आइये जानते है माँ दुर्गा के हवन की पूजा विधि और मन्त्र –
हवन सामग्री
नवरात्र में हवन का अपना विशेष महत्व होता है नवरात्र की नवमी तिथि के दिन हवन करने से पूर्व सारी सामग्री इकट्ठा कर लेनी चाहिए. नवरात्र में अंतिम दिन हवन के लिए हवन कुंड, हवन सामग्री, काले,लाल, सफेद तिल, आम की लकड़ी, साबूत चावल, जौ, पीली सरसों, चना, काली उडद साबुत, गुगुल, अनारदाना, बेलपत्र, गुड़, शहद.
गाय का घी, कर्पूर, दीपक, घी की आहुति के लिये लंबा लकड़ी अथवा स्टील का चम्मच, हवन सामग्री मिलाने के लिये बड़ा पात्र, गंगाजल, लोटा या आचमनी, अनारदाना, पान के पत्ते, फूल माला, फल, भोग के लिये मिष्ठान, खीर आदि सामग्री रख ले.
नवरात्र में हवन करने की विधि
नवरात्र की नवमी तिथि को सर्वप्रथम मां दुर्गा के नौवें स्वरूप मां सिद्धादात्री की विधिवत पूजा कर लें. इसके बाद कलश की पूजा करके पूजा स्थान या साफ-सुथरी जगह पर आटा से एक रंगोली बनाएं और उसके ऊपर हवन कुंड रख दें. इसके साथ ही पास में चौकी में मां दुर्गा की तस्वीर या मूर्ति के साथ कलश रख लें. अब हवन शुरू करें. इसके लिए हवन कुंड में लकड़ी रखें और थोड़ा सा कपूर या घी डालकर जला दें. इसके साथ ही एक आसन में बैठ जाएं और मंत्रों के साथ हवन आरंभ करें. जब हवन मंत्रों के साथ आहुति डाल दें, तो फिर खीर का भोग डालें. फिर सूखा नारियल में बीच से किसी चीज की मदद से छेद कर दें और उसमें घी भर दें. अंत में इसे हवन कुंडल के बीच में दबा दें. इसके बाद अंत में बची हुआ हवन धूप को ऊपर से डालकर इस मंत्र को बोले- ऊं पूर्णमद: पूर्णमिदम् पुर्णात पूण्य मुदच्यते, पुणस्य पूर्णमादाय पूर्णमेल विसिस्यते स्वाहा।
इन मंत्रों के साथ दें हवन में आहुति
ऊं आग्नेय नम: स्वाहा
ऊं गणेशाय नम: स्वाहा
ऊं गौरियाय नम: स्वाहा
ऊं नवग्रहाय नम: स्वाहा
ऊं दुर्गाय नम: स्वाहा
ऊं महाकालिकाय नम: स्वाहा
ऊं हनुमते नम: स्वाहा
ऊं भैरवाय नम: स्वाहा
ऊं कुल देवताय नम: स्वाहा
ऊं न देवताय नम: स्वाहा
ऊं ब्रह्माय नम: स्वाहा
ऊं विष्णुवे नम: स्वाहा
ऊं शिवाय नम: स्वाहा
ऊं जयंती मंगलाकाली, भद्रकाली कपालिनी दुर्गा क्षमा शिवाधात्री स्वाहा
स्वधा नमस्तुति स्वाहा।
ऊं ब्रह्मा मुरारी त्रिपुरांतकारी भानु: शशि भूमि सुतो बुधश्च: गुरुश्च शुक्र शनि राहु केतव सर्वे ग्रहा शांति करा भवंतु स्वाहा।
ऊं गुरुर्ब्रह्मा, गुरुर्विष्णु, गुरुर्देवा महेश्वर: गुरु साक्षात् परब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नम: स्वाहा।
ऊं शरणागत दीनार्त परित्राण परायणे, सर्व स्थार्ति हरे देवि नारायणी नमस्तुते।
हवन के बाद करे ये कार्य
आम की लकड़ी में घी लगाकर हवन कुंड की राख इस पर लगाएं और उस राख को माथे, गले पर और दोनों बाजुओं और हृदय के माध्यम में लगाएं. महिलाओं को केवल गले पर लगाना चाहिए. इस राख को लेकर किसी पोटली में बनाकर रख लें और इसको सुरक्षित स्थान पर या फिर अपने तिजोरी में रख लें. यदि कोई बीमार हो जाता है तो नजर दोष जैसे लगे तो इसका तिलक कर सकते हैं आपको फायदा होगा.