इस साल 3 मई को परशुराम जयंती मनाई जाएगी | बैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हर वर्ष परशुराम जयंती मनाई जाती है | धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इसी दिन भगवान विष्णु ने परशुराम के रूप में अपना 6वां अवतार लिया था
जाने भगवान परशुराम का जन्म कैसे हुआ
पौराणिक कथाओं की मानें तो महर्षि भृगु के पुत्र का नाम ऋचिक था जिनका विवाह सत्यवती के साथ हुआ था जो राजा गाधि की पुत्री थीं | वह अपने पिता की इकलौती संतान थी |
ऐसे में महर्षि भृगु से अपने विवाह के उपरांत सत्यवती ने अपने पिता की संतान उत्पत्ति और अपने लिए भी योग्य संतान उत्पत्ति के लिए प्रार्थना की | इसके बाद प्रसन्न होकर सत्यवती को महर्षि भृगु ने दो फल दिए और यह बताया कि इसमें से एक क्षत्रिय और एक ब्राह्मण गुणों से युक्त फल है |
जिसमें से एक वह स्वयं खाए और दूसरा फल अपनी माता को दे दे लेकिन गलती से सत्यवती ने अपने हिस्से का फल मां को और मां के हिस्से का फल खुद खा लिया |
महर्षि भृगु को जब इस बात का पता चला तो उन्होंने सत्यवती से हुई गलती पर कहा कि तुम्हारी गलती की वजह से तुम्हारा पुत्र ब्राह्मण होने के बाद भी क्षत्रिय गुणों से भरा होगा और तुम्हारी माता की संतान क्षत्रिय होने के बाद भी ब्राह्मणों की तरह आचरण से भरा होगा इस पर सत्यवती ने अपनी गलती स्वीकार करते हुए महर्षि भृगु से क्षमा मांगते हुए प्रार्थना कि की ऐसा नहीं हो बल्कि आप ऐसा वरदान दें कि मेरे पुत्र का पुत्र क्षत्रिय गुणों वाला हो |
सत्यवती की कोख से जमदग्रि मुनि ने जन्म लिया जिनका विवाह बाद में रेणुका से हुआ | इसी मुनि जमदग्रि के चौथे पुत्र के रूप में परशुराम ने जन्म लिया और उनका आचरण क्षत्रियों की तरह था |
परशुराम जी का जन्म के वक्त रखा गया था राम नाम
पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान विष्णु के अवतार परशुराम जी का जन्म धरती पर हो रहे अन्याय, अधर्म और पाप कर्मों का विनाश करने के लिए हुआ था |उन्हें सात चिरंजीवी पुरुषों में से एक माना जाता है |
परशुराम जी का जन्म के वक्त राम नाम रखा गया था | वे भगवान शिव की कठोर साधना करते थे | जिसके बाद भगवान भोले ने प्रसन्न होकर उन्हें कई अस्त्र-शस्त्र प्रदान किए थे |
परशु भी उनमें से एक था जो उनका मुख्य हथियार था | उन्होंने परशु धारण किया था इसलिए उनका नाम परशुराम पड़ गया |