अयोध्या नगरी दिवाली के इस उत्सव पर दुल्हन की तरह सजी है, राम की इस पावन नगरी को देखकर ऐसा लग रहा है मानो स्वर्ग उतरकर धरती पर आ गया हो, ऐसे में छोटी दिवाली के मौके पर पीएम मोदी का यहां आगमन चार चांद लगा रहा है. शहर भर में ‘रामायण द्वार’ और झांकी स्थापित की गई है. पर्यटकों को इतिहास में ले जाने के लिए शहर में रामायण काल के होर्डिंग और बैनरों से सजाया गया है. अयोध्या हाईवे से नयाघाट तक दीपोत्सव के लिए अलग-अलग नामों से 30 तरह के स्वागत द्वार बनाए गए है. कुछ स्वागत द्वार को ‘राम सेतु द्वार’ और अन्य को ‘भारत द्वार’ नाम दिया गया है.
अयोध्या में श्रीराम भगवान की पूजा के बाद पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा कि राम लला के आर्दश हमारे भीतर हैं. उन्होंने कहा, ”श्री रामलला के दर्शन और उसके बाद राजा राम का अभिषेक, ये सौभाग्य रामजी की कृपा से ही मिलता है. जब श्रीराम का अभिषेक होता है तो हमारे भीतर भगवान राम के आदर्श, मूल्य और दृढ़ हो जाते हैं.”
पीएम नरेंद्र मोदी ने दावा किया कि आजादी के अमृतकाल में भगवान राम जैसी संकल्प शक्ति, देश को नई ऊंचाई पर ले जाएगी. भगवान राम ने अपने वचन में, अपने विचारों में, अपने शासन में, अपने प्रशासन में जिन मूल्यों को गढ़ा. वो सबका साथ-सबका विकास की प्रेरणा हैं और सबका विश्वास-सबका प्रयास का आधार हैं. साथ ही कहा कि आजादी के अमृतकाल में देश ने अपनी विरासत पर गर्व और गुलामी की मानसिकता से मुक्ति का आवाहन किया है. राम भगवान किसी को पीछे नहीं छोड़ते.
पीएम नरेंद्र मोदी ने बताया कि लाल किले से मैंने सभी देशवासियों से पंच प्राणों को आत्मसात करने का आह्वान किया है. इन पंच प्रांणों की ऊर्जा जिस एक तत्व से जुड़ी है, वो है भारत के नागरिकों का कर्तव्य. आज अयोध्या नगरी में, दीपोत्सव के इस पावन अवसर पर हमें अपने इस संकल्प को दोहराना है, श्रीराम से सीखना है. भगवान राम, मर्यादापुरुषोत्तम कहे जाते हैं. मर्यादा, मान रखना भी सिखाती है और मान देना भी, और मर्यादा, जिस बोध की आग्रह होती है, वो बोध कर्तव्य ही है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि राम किसी को पीछे नहीं छोड़ते. राम कर्तव्य-भावना से मुख नहीं मोड़ते. राम भगवान भारत की उस भावना के प्रतीक हैं, जो मानती है कि हमारे अधिकार हमारे कर्तव्यों से स्वयं सिद्ध हो जाते हैं.
श्रीराम से जितना सीख सकें उतना सीखना है. भगवान राम मर्यादा पुरुषोत्तम कहे जाते हैं. मर्यादा मान रखना भी सिखाती है और मान देना भी सिखाती है. हमारे धर्मग्रंथों में कहा गया है, ‘रामों विग्रहवान धर्मः’ अर्थात राम साक्षात धर्म के ज्ञानी कर्तव्य के सजीव स्वरूप हैं. भगवान राम जब जिस भूमिका में रहे, उन्होंने कर्तव्यों पर सबसे ज्यादा बल दिया. जब वो राजकुमार थे तब ऋषियों की, उनके आश्रमों की रक्षा की. राज्याभिषेक के समय श्रीराम ने आज्ञाकारी बेटे का कर्तव्य निभाया.
उन्होने पिता और परिवार के वचनों को प्राथमिकता देते हुए राज्य के त्याग को अपना कर्तव्य समझकर स्वीकार किया. वो वन में होते हैं तो वनवासियों को गले लगाते हैं. आश्रम में जाते हैं तो मां सबरी का आशीर्वाद लेते हैं. वो सबको साथ लेकर लंका पर विजय प्राप्त करते हैं. जब सिंहासन पर बैठते हैं तो वन से वही सब साथी राम के साथ खड़े होते हैं, क्योंकि राम किसी को पीछे नहीं छोड़ते. राम कर्तव्य भावना से मुख नहीं मोड़ते. राम भारत की उस भावना के प्रतीक हैं जो मानती है कि हमारे अधिकार हमारे कर्तव्यों से सिद्ध हो जाते हैं. इसलिए हमें कर्तव्यों के प्रति समर्पित होने की जरूरत है. संयोग देखिए हमारे संविधान की जिस मूल प्रति पर भगवान राम, मां सीता और लक्ष्मण का चित्र अंकित है, संविधान का वो पृष्ठ भी मौलिक अधिकारों की बात करता है. इसलिए हम जितना कर्तव्यों के संकल्प को मजबूत करेंगे राम जैसे राज्य की संकल्पना साकार होती जाएगी.
सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा, “आज से 6 साल पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मार्ग दर्शन और उनकी प्रेरणा से अयोध्या का दीपोत्सव कार्यक्रम शुरू हुआ. यह प्रदेश का एक उत्सव देश का उत्सव बनता गया. आज ये अपनी सफलता की नई ऊंचाई को छू रहा है.”