Thursday, March 30, 2023
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Rama Ekadashi 2022: कब है रमा एकादशी, जानिए तिथि, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को रमा एकादशी का व्रत किया जाता है. हर एकादशी की तरह यह एकादशी भगवान विष्णु को समर्पित है. रमा एकादशी को सबसे शुभ और महत्वपूर्ण एकादशी माना जाता है. इसे कार्तिक कृष्ण एकादशी या रम्भा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. ये एकादशी दिवाली के चार दिन पहले आती है. रमा एकादशी का व्रत करने से ब्रह्महत्या सहित अनेक प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं. जो भी व्यक्ति रमा एकादशी व्रत की कथा को पढ़ता या सुनता है, उसके भी पाप मिट जाते हैं. आइये जानते है इस वर्ष यह एकादशी कब है और क्या है इसका शुभ मुहूर्त और पूजा विधि –

रमा एकादशी व्रत का शुभ मुहूर्त

एकादशी तिथि प्रारम्भ – अक्टूबर 20, 2022 को 04:04  pm बजे से और एकादशी तिथि समाप्त – अक्टूबर 21, 2022 को 05:22 pm बजे. उदया तिथि के अनुसार, रमा एकादशी का व्रत 21 अक्टूबर को रखा जाएगा.

रमा एकादशी 2022 व्रत पारण का मुहूर्त

रमा एकादशी पारण तिथि- 22 अक्टूबर, शनिवार, सुबह 6 बजकर 26 मिनट से 8 बजकर 42 मिनट तक

पारण के दिन द्वादशी तिथि समाप्त होने का समय- शाम 6 बजकर 02 मिनट पर

रमा एकादशी व्रत पूजा सामग्री  

श्री विष्णु जी का चित्र अथवा मूर्ति,पुष्प,नारियल ,सुपारी,फल,लौंग,धूप,दीप,घी ,पंचामृत ,अक्षत,तुलसी दल,चंदन ,मिष्ठान.

रमा एकादशी पूजा विधि

एकादशी व्रत के दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करें. इसके बाद घर के पूजा स्थान को साफ़ कर दीप जलाएं. इसके बाद भगवान विष्णु का गंगाजल से अभिषेक करें. फिर भगवान विष्णु को पीले फूल और तुलसी के पत्ते अर्पित करें. भगवान को पीले रंग की मिठाई का भोग लगाएं, साथ ही उन्हें पंचामृत अर्पित करें. इसके बाद भगवान की आरती उतारें.

इस दिन भगवान को सात्विक चीजों का भोग लगाया जाता है. ऐसे में इस बात का विशेष ध्यान रखें की भगवान विष्णु के भोग में तुलसी का इस्तेमाल जरूर करें. धार्मिक मान्यता है कि बिना तुलसी के भागवान भोग स्वीकार नहीं करते हैं. रमा एकादशी के दिन भगवान विष्णु के साथ मां लक्ष्मी की पूजा भी करनी चाहिए. उपवास के दौरान अधिक से अधिक भगवान का ध्यान करें. दूसरे दिन सुबह भगवान का चरणामृत ग्रहण करने के बाद ब्राह्मण भोजन कराएं या उन्हें अन्न का दान करें. इसके बाद एकादशी व्रत का पारण करें.

रमा एकादशी व्रत कथा

एक पौराणिक कथा के अनुसार, एक नगर में मुचुकंद नाम के एक प्रतापी राजा थे. उनकी चंद्रभागा नाम की एक पुत्री थी. राजा ने अपनी बेटी का विवाह राजा चंद्रसेन के बेटे शोभन के साथ कर दिया. शोभन एक समय बिना खाए नहीं रह सकता था. शोभन एक बार कार्तिक मास के महीने में अपनी पत्नी के साथ ससुराल आया, तभी रमा एकादशी व्रत पड़ा. चंद्रभागा के गृह राज्य में सभी रमा एकादशी का नियम पूर्वक व्रत रखते थे और ऐसा ही करने के लिए शोभन से भी कहा गया.

शोभन इस बात को लेकर परेशान हो गया कि वह एक पल भी भूखा नहीं रह सकता है तो वह रमा एकादशी का व्रत कैसे करेगा. वह इसी परेशानी के साथ पत्नी के पास गया और उपाय बताने के लिए कहा. चंद्रभागा ने कहा कि अगर ऐसा है तो आपको राज्य के बाहर जाना पड़ेगा. क्योंकि राज्य में ऐसा कोई व्यक्ति नहीं है जो इस व्रत नियम का पालन न करता हो. यहां तक कि इस दिन राज्य के जीव-जंतु भी भोजन नहीं करते हैं.

आखिरकार शोभन को रमा एकादशी उपवास रखना पड़ा, लेकिन पारण करने से पहले उसकी मृत्यु हो गयी. चंद्रभागा ने पति के साथ खुद को सती नहीं किया और पिता के यहां रहने लगी. उधर एकादशी व्रत के पुण्य से शोभन को अगले जन्म में मंदरांचल पर्वत पर आलीशान राज्य प्राप्त हुआ. एक बार मुचुकुंदपुर के ब्राह्मण तीर्थ यात्रा करते हुए शोभन के दिव्य नगर पहुंचे. उन्होंने सिंहासन पर विराजमान शोभन को देखते ही पहचान लिया. ब्राह्मणों को देखकर शोभन सिंहासन से उठे और पूछा कि यह सब कैसे हुआ. तीर्थ यात्रा से लौटकर ब्राह्मणों ने चंद्रभागा को यह बात बताई. चंद्रभागा बहुत खुश हुई और पति के पास जाने के लिए व्याकुल हो उठी. वह वाम ऋषि के आश्रम पहुंची. चंद्रभागा मंदरांचल पर्वत पर पति शोभन के पास पहुंची. अपने एकादशी व्रतों के पुण्य का फल शोभन को देते हुए उसके सिंहासन व राज्य को चिरकाल के लिये स्थिर कर दिया. तभी से मान्यता है कि जो व्यक्ति इस व्रत को रखता है वह ब्रह्महत्या जैसे पाप से मुक्त हो जाता है और उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं.

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