आदित्य रॉय कपूर पहली बार एक्शन फिल्म करने जा रहे हैं. बॉलीवुड के आशिक अब मार-धाड़ कर अपना स्वैग दिखा रहे हैं. जब अहमद खान ने फिल्म ‘राष्ट्र कवच ओम’ का ऐलान किया था, साथ में आदित्य रॉय कपूर को भी नए अंदाज में लॉन्च करने का सपना दिखाया था. उनका वो सपना स्क्रीन पर कितना कारगर साबित हुआ है. यह देखने के लिए आपको मूवी देखनी होगी.
क्या है फिल्म की कहानी
राष्ट्र कवच ओम एक बहादुर, देशभक्त अधिकारी की कहानी है. रॉ एजेंट ओम (आदित्य रॉय कपूर) को एक मिशन पर भेजा जाता है. देश की एक महत्वपूर्ण संपत्ति का सुराग खोजने के लिए उसे एक युद्धपोत में घुसपैठ करनी पड़ती है. जहाज पर दुश्मनों से लड़ते हुए उसे गोली लग जाती है. ओम बच जाता है और ओम की सहयोगी काव्या (संजना सांघी) को उसे स्वस्थ होने में मदद करने के लिए भेजा जाता है. कई हफ्तों तक बेहोश रहने के बाद, ओम जागता है और उसे पता चलता है कि उसकी याददाश्त चली गई है. उसका दावा है कि उसका नाम ऋषि है. उसके सेफहाउस पर हमला हो जाता है और इसलिए, दोनों को ट्रेनिंग लेनी पड़ती है. ओम को कसौली में अपने घर की चमक मिलती है. वह काव्या को वहां ले जाने के लिए कहता है. कसौली में उसे अपना बचपन का घर मिलता है, जो जलकर खाक हो गया है. ओम को घर में अपने पिता देव (जैकी श्रॉफ) की तस्वीर मिलती है. वह इसे संजना को दिखाता है और यह उसे दो कारणों से चौंका देता है. सबसे पहले, उसकी और दूसरों की जानकारी के अनुसार, ओम रॉ के एक वरिष्ठ अधिकारी, जय राठौर (आशुतोष राणा) का पुत्र है. दूसरा चौंकाने वाला पहलू यह है कि देव को देशद्रोही माना जाता है. 2003 में, उन्होंने ‘कवच’ नामक दुनिया की सबसे अच्छी रक्षा प्रणाली तैयार की थी. रॉ के मुताबिक उसने भारत के दुश्मनों से हाथ मिलाया और ‘कवच’ बेच दिया. हालाँकि, जय राठौर इस सिद्धांत में विश्वास नहीं करते हैं. वह यह भी जानता है कि ओम का असली नाम ऋषि है और वह उसका जैविक पुत्र नहीं है. आगे क्या होता है इसके लिए फ़िल्म देखनी होगी.
क्या है राष्ट्र कवच ओम मूवी का रिव्यू
आदित्य रॉय कपूर फिल्मी परिवार से हैं तो हिट और फ्लॉप का खास फर्क उनकी तकदीर पर पड़ता नहीं हैं. अगर बॉक्स ऑफिस की सफलता उनके सेलेक्शन का पैमाना होती तो वह कब का रेस से बाहर हो चुके होते. कोरियोग्राफर से फिल्म निर्देशक और फिर निर्माता बने अहमद खान को फिल्म बनानी हो तो उनके पास ऐसे लोगों के लिए भी फार्मूला है, ‘बागी 2’, ‘बागी 3’, ‘हीरोपंती 2’ और अब ‘राष्ट्र कवच ओम’. फिल्म ‘राष्ट्र कवच ओम’ देखने के बाद आपको समझ आ सकता है कि कैसे ‘हीरोपंती 2’ से भी खराब फिल्म बनाई जा सकती है. फाइट मास्टर टीनू वर्मा के बेटे कपिल वर्मा तमाम दिग्गज छायाकारों के साथ काम कर चुके हैं. उनका काम होता था स्टेडीकैम ऑपरेटर का. वह भारी भरकम मूवी कैमरा अपने शरीर पर बांधकर शूटिंग के दौरान कलाकारों के एहसास रिकॉर्ड करने के लिए उनके साथ भागते रहे हैं. यही उनकी फिल्ममेकिंग की पाठशाला रही है. कपिल वर्मा और अहमद खान दोनों ने मिलकर एक प्रोजेक्ट बनाया है, सिनेमा इसमें कहीं नहीं है.
कपिल वर्मा का निर्देशन औसत है. वह एक्शन को अच्छे से हैंडल करते है. कुछ दृश्यों को स्मार्टली निष्पादित किया जाता है जैसे ओम की एंट्री, ओम और काव्या का सेफहाउस में खलनायकों से लड़ना और ओम का आर्मेनिया में ट्रक का पीछा करना. एक भावनात्मक दृश्य जो सामने आता है वह है यशवी (प्राची शाह पांड्या) ओम को खीर खिला रहा है. दूसरी ओर, कहानी दर्शकों को भ्रमित करती है क्योंकि फिल्म में बहुत अधिक फ्लैशबैक है. पूरा सेटअप सतही लगता है, खासकर फर्स्ट हाफ में. फिर भी, इंटरमिशन प्वाइंट तक, फिल्म अच्छी लगती है और उम्मीद होती है कि आगे फ़िल्म अच्छी हो जाएगी. लेकिन सेकेंड हाफ में बहुत सारे बचकाने सीक्वंस होते हैं. क्लाइमेक्स की लड़ाई BAAGHI फिल्मों का एक दृश्य प्रस्तुत करती है.
आदित्य रॉय कपूर काफी अच्छे लगते हैं. उन्होंने इससे पहले पूरी तरह से एक्शन रोल नहीं किया है. इसलिए, उनसे अपेक्षाएं न्यूनतम हैं. लेकिन आदित्य एक्शन रोल में सरप्राइज कर देते हैं. संजना सांघी ने आत्मविश्वास से भरा काम किया है. फिल्म की शुरुआत में उनका एक्शन सीक्वेंस मनोरंजक है. आशुतोष राणा ने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया. हालाँकि, जिस तरह से वह ‘मेमोरी’ का गलत उच्चारण करते है, वह अनजाने में हँसी लाएगा. प्रकाश राज (मूर्ति सहाय) थोड़ा ओवर लगते हैं लेकिन यह उनके किरदार पर सूट करता है. जैकी श्रॉफ अपने रोल में जंचते हैं. प्राची शाह पांड्या अपनी छाप छोड़ती हैं.
फिल्म को देखे की ना देखे
फिल्म ‘राष्ट्र कवच ओम’ जैसी फिल्मों का शहर शहर, गली गली प्रचार खूब होता है. पूरा देश मथ डालते हैं इसके सितारे करोड़ों फूंककर. इतनी मेहनत अगर फिल्म बनाने में कर ली जाए तो शायद तिग्मांशु धूलिया वाले संवाद को बार बार याद दिलाना भी न पड़े. तो आपको क्या नहीं बनना है, आपको याद दिलाया जा चुका है. जाइए और फिल्म ‘रॉकेट्री’ देखिए, समझ आएगा कि सिनेमा क्या होता है!