5 september को ब्रिटेन की नई प्रधानमंत्री की घोषणा हुई. कंजर्वेटिव पार्टी ने सोमवार को हाउज ऑफ कॉमन्स ने लिज ट्रस को प्रधानमंत्री के रूप में चुन लिया, ट्रस को 81 हजार से ज्यादा वोट मिले. वहीं, सुनक को 60 हजार वोट ही मिला पूर्व वित्त मंत्री ऋषि सुनक रेस में शुरू से ही काफी आगे थे. वहीं, विदेश मंत्री लिज ट्रस शुरू में टॉप दो में भी शामिल नहीं थीं. लेकिन अब जब इस रेस में वोटिंग का दायरा पार्टी कार्यकर्ताओं तक बढ़ गया, तब ऋषि सुनक रेस में पिछड़ते चले गए.
लिज ट्रस कौन हैं ?
सरकारी स्कूल में पढ़ीं 47 साल की ट्रस के पिता गणित के प्रोफेसर और मां एक नर्स थीं. लेबर पार्टी समर्थक परिवार से आने वालीं ट्रस ने ऑक्सफोर्ड से दर्शन, राजनीति और अर्थशास्त्र की पढ़ाई की है. पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने कुछ समय के लिए अकाउंटेंट के रूप में भी काम किया. इसके बाद वह राजनीति में आ गईं. सबसे पहला चुनाव उन्होंने पार्षद का जीता था. परिवार लेबर पार्टी का समर्थक था, लेकिन ट्रस को कंजरवेटिव पार्टी की विचारधारा पसंद आई. ट्रस को राइट विंग का पक्का समर्थक माना जाता है. 2010 में ट्रस पहली बार सांसद चुनी गईं. ट्रस शुरुआत में यूरोपियन यूनियन से अलग होने के मुद्दे खिलाफ थीं. हालांकि, बाद में ब्रेग्जिट के हीरो बनकर उभरे बोरिस जॉनसन के समर्थन में आ गईं. ब्रिटिश मीडिया अक्सर पूर्व प्रधानमंत्री मार्गरेट थ्रेचर से उनकी तुलना करता है.
क्यों हारे ऋषि सुनक, जाने पांच बड़ी वजह
आरंभ से ब्रिटेन के प्रधानमंत्री पद के प्रबल दावेदार रहे भारतीय मूल के ऋषि सुनक लिज ट्रस से बीस हजार वोटो से हार गए है आइये जाने वो बड़ी वजहे जिसकी वजह से ऋषि सुनक इतिहास नहीं रच पाए
टैक्स में कटौती
वर्ष 2019 में बोरिस जॉनसन के प्रधानमंत्री बनने के बाद ब्रिटेन के वित्त मंत्रालय का प्रभार ऋषि सुनक के पास आया. परन्तु उसके एक साल बाद ही कोरोना महामारी ने पुरे विश्व को अपने कब्जे में ले लिया और इसकी वजह से लाखों लोगों को नौकरी गंवानी पड़ी. इस दौरान सुनक पर बेरोजगारों को आर्थिक मदद और टैक्स दरों में कटौती करने का काफी दबाव पड़ा. लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. पीएम पद की डिबेट में भी सुनक ने टैक्स कटौती के विरोध में बयान दिए, जिनसे वोटरों के पास नकारात्मक संदेश गया.
वही दूसरी तरफ लिज ट्रस ने टैक्स कटौती से लेकर मुश्किल हालात में ज्यादा खर्च की बात भी कही. उन्होंने तर्क दिया है कि कठिन समय में वित्तीय घाटे के बावजूद सरकार को ज्यादा खर्च करना चाहिए. उनके इस संदेश को मतदाताओं ने महंगाई के खिलाफ कदम माना. हालांकि, अर्थशास्त्रियों ने जहां सुनक की तारीफ की है, तो वहीं ट्रस के वादों को खोखला करार दिया.
जॉनसन का विरोध महंगा
बोरिस जॉनसन का प्रधानमंत्री पद छोड़ने के पीछे सबसे बड़ा हाथ ऋषि सुनक का था. इस कारण इस्तीफे के बाद नए पीएम पद के चुनाव में उन्हें जॉनसन और उनके समर्थकों का समर्थन नहीं मिला. इसके अलावा कार्यकर्ताओं ने ज्यादा मुखर विरोध को भी नकारात्मक रूप से लिया.
ग्रीन कार्ड विवाद
सुनक पर यह भी आरोप लगे है कि जब वे अमेरिका से पढाई कर ब्रिटेन लौटे तो उन्होंने वहां का ग्रीन कार्ड सरेंडर नहीं किया. 2006 से 2009 तक वो अमेरिका में काम करते रहे. कैलिफोर्निया में अब भी उनका 5 लाख पाउंड का आलीशान पेंटहाउस है. एक रिपोर्ट के अनुसार , ब्रिटेन के लोग दोहरी नागरिकता रख सकते हैं, लेकिन सुनक जैसे बड़े नेता के लिए इसे अच्छा नहीं माना गया. कंजर्वेटिव पार्टी भी दोहरी नागरिकता के मुद्दे पर अपने नेता का बचाव नहीं कर सकी.
पत्नी अक्षता मूर्ति का विवाद
प्रधानमंत्री पद चुनाव प्रचार के दौरान सुनक की पत्नी अक्षता का टैक्स विवाद भी उनको काफी नुकसान पहुंचा गया. इन्फोसिस में अक्षता मूर्ति कि 0.93 फीसदी हिस्सेदारी है. अक्षता सालाना जिसका करीब 11.65 करोड़ रुपये का डिविडेंड पाती हैं. अक्षता पर इसी कमाई से होने वाली आय पर टैक्स न देने का आरोप लगा. वित्त मंत्री रहते हुए सुनक ने बाद में इस मामले में जांच कराने की बात कही. उन्होंने कहना था कि उनकी पत्नी की कमाई ब्रिटेन से बाहर होती है, इसलिए वे ब्रिटेन में कर नहीं देतीं. हालांकि, बाद में अक्षता ने इंफोसिस से होने वाली कमाई पर भी टैक्स देने का वादा किया.
अंतिम में सुनक पिछड़े
शुरू से अंत तक पहुचने से पहले सुनक सांसदों की वोटिंग में हमेशा ट्रस से आगे रहे. लेकिन इस बीच कंजरवेटिव पार्टी के सदस्यों के हाथो में वोट आने बाद वह ट्रस से लगातार पिछड़ते नजर आए. और जब फाइनल राउंड में ट्रस और सुनक पहुंचे तो वहां पर ऋषि कमजोर नजर आए. कंजर्वेटिव पार्टी के 1.50 लाख से ज्यादा कार्यकर्ताओं के पोल में वह पिछड़ते गए. इसके अलावा कंजरवेटिव पार्टी के सीनियर नेताओं को भी समर्थन उम्मीद के अनुसार सुनक को नहीं मिला.