आज सावन में पड़ने वाली पहली संकष्टी चतुर्थी है. कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी (Sankashti Chaturthi) कहा जाता है. जबकि शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहते हैं. संकष्टी श्री गणेश चतुर्थी का अर्थ होता है- संकटों को हरने वाली. ऐसा कहाँ जाता है की जो व्यक्ति संकष्टी श्री गणेश चतुर्थी व्रत करता है, उसके जीवन में चल रही सभी समस्याओं का समाधान निकलता है और उसके सुख-सौभाग्य में वृद्धि होती है.
कब है संकष्टी चतुर्थी 2022
पंचांग के अनुसार,16 जुलाई को चतुर्थी तिथि दोपहर 01.27 से शुरू होकर 17 जुलाई की सुबह 10.49 तक रहेगी. चतुर्थी तिथि का चंद्रोदय 16 जुलाई को होने से इस दिन ये व्रत किया जाएगा.
जाने संकष्टी चतुर्थी शुभ मुहूर्त
- सावन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी 16 जुलाई 2022, शनिवार को दोपहर 01. 27 मिनट से शुरू हो रही है.
- वहीं, यह तिथि 17 जुलाई 2022, रविवार को सुबह 10. 49 मिनट पर समाप्त होगी.
- चंद्रोदय 16 जुलाई को होने के कारण इसी दिन गजानन संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखा जाएगा.
- आयुष्मान योग- 16 जुलाई सुबह 12.21 मिनट से रात 08.49 मिनट तक
- सौभाग्य योग- 16 जुलाई रात 08.49 मिनट से शुरू होकर 17 जुलाई शाम 5.49 मिनट तक
संकष्टी चतुर्थी कथा
गजानन संकष्टी चतुर्थी से संबंधति पौराणिक कथा प्रचलित है. इस कथा के अनुसार प्राचीन काल में किसी शहर में एक साहूकार और उसकी पत्नी रहते थे. साहूकार दम्पत्ति को ईश्वर में आस्था नहीं थी और वह निःसंतान थे. एक दिन साहूकार की पत्नी अपने पड़ोसी के घर गयी. उस समय पड़ोसी की पत्नी संकट चौथ की कथा कह रही थी. तब साहूकार की पत्नी ने उसे संकष्टी चतुर्थी के बारे में बताया. उसने कहा संकष्टी चतुर्थी के व्रत से ईश्वर सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं. तब साहूकार की पत्नी ने भी संकष्टी चतुर्थी का व्रत किया तथा सवा सेर तिलकुट चढ़ाया. इसके बाद साहूकार की पत्नी गर्भवती हुई और उसे पुत्र पैदा हुआ.
साहूकार का बेटा बड़ा हुआ तो उसने ईश्वर से कहा कि मेरे बेटे का विवाह तय हो जाए तो व्रत रखेगी और प्रसाद चढ़ाएगी. ईश्वर की कृपा से साहूकार के बेटे का विवाह तय हो गया लेकिन साहूकार की मां व्रत पूरा नहीं कर सकी. इससे भगवान नाराज हुए और उन्होंने शादी के समय दूल्हे को एक पीपल के पेड़ से बांध दिया. उसके बाद उस पीपल के पेड़ के पास वह लड़की गुजरी जिसकी शादी नहीं हो पायी थी. तब पीपल के पेड़ से आवाज ए अर्धब्याही! यह बात लड़की ने अपनी मां से कहा. मां पीपल के पेड़ के पास आया और पूछा तो लड़के ने सारी कहानी बताई. तब लड़की की मां साहूकारनी के पास गयी और सब बात बताई. तब साहूकारनी ने भगवान से क्षमा मांगी और बेटा मिल जाने के बाद व्रत करने और प्रसाद चढ़ाने के लिए ईश्वर प्रार्थना की. इसके कुछ दिनों बाद साहूकारनी का बेटा उसे मिल गया और उसकी शादी हो गयी तभी से सभी गांव वाले संकष्टी चतुर्थी की व्रत करने लगे.
संकष्टी चतुर्थी पूजा विधि
आज की संकष्टी चतुर्थी व्रत आयुष्मान और सौभाग्य योग में है, जो कार्यों में सफलता प्रदान करने वाली है. आज के दिन गणेश जी के गजानन स्वरूप की पूजा करते हैं और रात के समय में चंद्र देव को अर्घ्य देने के बाद व्रत का पारण करते हैं. संकष्टी चतुर्थी के दिन ऐसे करे पूजा
- सबसे पहले आप सुबह उठे और नहाकर साफ कपड़े पहन लें.
- इसके बाद गणेश जी को ध्यान में रखते हुए व्रत का संकल्प लें.
- अब गणेश जी की पूजा करना शुरू करें. गणेश जी को लाल वस्त्र के साफ चौकी पर बैठाए और उन्हें माला-फूल चढ़ाएं.
- इसके बाद दीपक और फल अर्पित करें.
- साथ ही गणेश जी को सिंदूर और अक्षत चढ़ाकर लड्डू या मोदक का भोग लगाएं.
- अब गणेश जी का ध्यान करें और चालीसा का पाठ करें.
- आखिरी में आरती करें और प्रसाद बाटंने के बाद चंद्रमा का दर्शन कर अपना व्रत पूर्ण करें.