ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या बड़ी अमावस्या के रूप में जानी जाती है.शास्त्रों में न्यायाधीश की उपाधि पाने वाले शनिदेव का जन्म ज्येष्ठ अमावस्या को हुआ था. इस वर्ष शनि जयंती (Shani Jayanti) 30 मई दिन सोमवार को है. माना जाता है कि इसी दिन सूर्य और छाया के संयोग से शनिदेव का जन्म हुआ था .इस बार शनि जयंती पर 30 साल बाद एक अद्भुत संयोग भी बन रहा है.
शनि जयंती पर एक अद्भुत संयोग
इस बार शनि जयंती पर एक अद्भुत संयोग बन रहा है. इस दिन सुबह 07 बजकर 13 मिनट से लेकर अगले दिन सुबह 05 बजकर 27 मिनट तक सर्वार्थ सिद्धि योग रहेगा. साथ ही शनिदेव अपनी स्वराशि कुंभ में रहेंगे. ज्योतिषियों का कहना है कि ऐसा संयोग करीब 30 साल बाद बन रहा है.
कैसे करे शनि जयंती पर पूजा
- इस पावन दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं .
- घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें.
- शनि चालीसा का पाठ करें.
- अगर संभव हो तो इस दिन व्रत भी रखें.
- शनि जयंती के दिन शनि देव को प्रसन्न करने के लिए शनि देव के दस नाम का जाप करना चाहिए.
कोणस्थ पिंगलो बभ्रु: कृष्णो रौद्रोन्तको यम:।
सौरि: शनैश्चरो मंद: पिप्पलादेन संस्तुत:।। - इस पावन दिन दान भी करें। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार दान करने से कई गुना फल की प्राप्ति होती है.
जाने शनिदेव को क्या अर्पित करना चाहिए
- शनि जयंती के दिन शनिदेव को शमी के पत्ते अर्पित करने चाहिए.गणेश जी, शिव जी के साथ शनिदेव को भी शमी के पत्ते विशेष प्रिय हैं.शनि जयंती के दिन शमी वृक्ष की पूजा की जाए और इसके नीचे सरसों तेल का दीपक जलाया जाए, तो शनि दोष से कुप्रभाव से बचाव होता है.
- शनि जयंती के दिन शनिदेव को अपराजिता के फूल अर्पित करने चाहिए. ये फूल नीले रंग के हैं। शनिदेव को नीला रंग विशेष प्रिय है। शनि देव नीले वस्त्र धारण करते है.
- ऐसी मान्यता है कि जो लोग शनिदेव को तेल चढ़ाते हैं, उनकी कुंडली के सभी शनि दोष शांत होते हैं और जीवन में सुख-शांति बनी रहती है .शनि जयंती पर शनि भगवान का सरसों के तेल से अभिषेक करना चाहिए .
- शनि जयंती पर काले तिल और काले तिल से बने व्यंजन शनिदेव को जरूर चढ़ाना चाहिए. काले तिल का कारक शनि ग्रह ही है। इस कारण शनि के लिए काले तिल का दान भी करना चाहिए.
जाने शनि के जन्म की कथा
स्कंदपुराण की कथा के अनुसार, शनि देव की माता का नाम छाया और उनके पिता का नाम सूर्य देव है.सूर्य देव का विवाह राजा दक्ष की कन्या संज्ञा से हुआ था. अब आप को यह जानना होगा की जब सूर्य देव का विवाह संज्ञा से हुआ था तो शनि देव की माता छाया कैसे तो आओ हम आपको इस कथा के बारे में बताते है –
जब संज्ञा का विवाह सूर्य देव से हुआ, तो वह सूर्य देव के तेज से परेशान थीं. वे सूर्य देव के तेज को कम करना चाहती थी. समय व्यतीत होने के साथ ही संज्ञा ने सूर्य देव की तीन संतानों को जन्म दिया. उनका नाम वैवस्वत मनु, यमुना और यमराज हैं.
उन्होंने अब सूर्य देव को तेज को कम करने के लिए एक उपाय सोचा, ताकि सूर्य देव इस बारे में न जानें और संतानों के पालन पोषण में भी कोई समस्या न हो. उन्होंने अपने तपोबल से अपने समान ही दूसरी स्त्री को प्रकट किया, जिसका नाम संवर्णा रखा. उनको छाया भी कहते हैं.
उन्होंने छाया से कहा कि अब से तुम सूर्य देव और बच्चों के साथ रहोगी. इस बारे में किसी को पता नहीं चलना चाहिए. यह कहकर संज्ञा अपने पिता दक्ष के घर गईं, लेकिन उनके पिता उनके इस कार्य से नाराज हो गए और पुन: सूर्यलोक जाने को कहने लगे.
संज्ञा सूर्यलोक नहीं गईं और वन में जाकर घोड़ी का रूप धारण करके तप करने लगीं. उधर सूर्यलोक में छाया को सूर्य देव के तेज से कोई समस्या नहीं थी. वे उनके साथ रहने लगीं. छाय और सूर्य देव से तीन संतानों ने जन्म लिया, जिसमें शनि देव, मनु और भद्रा हैं.
कहा जाता है कि जब शनि देव मां छाया के गर्भ में थे, तो उन्होंने भगवान शिव की कठोर तपस्या की थी, जिसके प्रभाव से शनि देव का वर्ण काला हो गया. जब शनि देव पैदा हुए, तो सूर्य देव को लगा कि काले रंग का पुत्र उनका नहीं हो सकता है. उन्होंने छाया के चरित्र पर संदेह किया.
मां को अपमानित होते देखकर शनि देव क्रोध से पिता सूर्य देव की ओर देखने लगे. उनकी शक्ति से सूर्य देव काले हो गए और कुष्ठ रोग हो गया. वहां से सूर्य देव शंकर जी के शरण में गए, जहां उनको अपनी गलती पता चली. जब सूर्य देव ने क्षमा मांगी, तो फिर उनका स्वरूप पहले जैसा हो गया. इस घटना के बाद से सूर्य देव और शनि देव में रिश्ते खराब हो गए.