इस वर्ष 26 september से शारदीय नवरात्रि का आरंभ हो चुका है. आज नवरात्रि का पांचवां दिन है और आज मां स्कंदमाता की पूजा का विधान है. माँ स्कंदमाता को मनुष्य के लिए मोक्ष के द्वार खोलने वाली माता के रूप में पूजा जाता है. कहा जाता है कि स्कंदमाता भक्तों की समस्त इच्छाओं को पूरा करती हैं और जीवन में खुशियां देती हैं. संतान प्राप्ति के लिए स्कंदमाता की आराधना करना लाभकारी माना गया है. आइये जाने माँ की पूजा विधि, मंत्र और कथा-
मां स्कंदमाता का रूप और कथा
मां स्कंदमाता का निवास पहाड़ों पर माना जाता है. सिंह पर सवार मां स्कंदमाता की गोद में भगवान कार्तिकेय विराजमान है. इन माता की चार भुजाएं हैं. माता ने अपने दो हाथ में कमल का फूल पकड़ा हुआ है. इनकी एक भुजा ऊपर की तरफ उठी हुई है. एक हाथ से अपने पुत्र स्कंद को पकड़ा हुआ है. सिंह इनका वाहन है. इसके अलावा इन्हें पद्मासना देवी ,पार्वती एवं उमा नाम से भी जाना जाता है.
कथा
पौराणिक कथा के मुताबिक, तारकासुर नाम का एक महाबलशाली राक्षस था, जिसकी मृत्यु केवल शिव पुत्र से ही संभव थी. तब मां पार्वती ने अपने पुत्र भगवान स्कन्द (कार्तिकेय का दूसरा नाम) को युद्ध के लिए प्रशिक्षित करने हेतु स्कन्द माता का रूप लिया. उन्होंने भगवान स्कन्द को युद्ध के लिए प्रशिक्षित किया था. कहा जाता है कि स्कंदमाता से युद्ध प्रशिक्षण लेने के पश्चात भगवान स्कंद ने तारकासुर का वध किया.
माँ स्कन्दमाता की पूजा विधि
- नवरात्रि के पांचवे दिन प्रातः उठाकर स्नान करें और स्वच्छ और हरे रंग के वस्त्र धारण करें.
- फिर घर के मंदिर या पूजा स्थान में चौकी पर स्कंदमाता की तस्वीर या प्रतिमा स्थापित करें.
- उसके बाद देवी को हरी चूड़ी, हरी साड़ी, मेहंदी, सिंदूर, रौली, अक्षत अर्पित करें.
- मां को भोग के रूप में मिष्ठान और पांच प्रकार के फलों का भोग लगाएं.
- मां को केले का भोग अति प्रिय है,मां को आप खीर का प्रसाद भी अर्पित करें उसके बाद मां की आरती करें.
- ऐसी मान्यता है कि हरी चुनरी में नारियल रखकर नन्दगोपगृहे जाता यशोदागर्भ सम्भवा. ततस्तौ नाशयिष्यामि विन्ध्याचलनिवासिनी” इस मंत्र का 108 बार जाप कर उस नारियल को बांधकर हमेशा अपने सिरहाने रखने से सूनी गोद जल्द हरी-भरी हो जाती है अर्थात संतान सुख के योग बनते हैं.
पूजन मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु माँ स्कंदमाता रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
आरती
जय तेरी हो स्कंद माता, पांचवा नाम तुम्हारा आता.
सब के मन की जानन हारी, जग जननी सब की महतारी.
तेरी ज्योत जलाता रहूं मैं, हरदम तुम्हे ध्याता रहूं मैं.
कई नामो से तुझे पुकारा, मुझे एक है तेरा सहारा.
कहीं पहाड़ों पर है डेरा, कई शहरों में तेरा बसेरा.
हर मंदिर में तेरे नजारे गुण गाये, तेरे भगत प्यारे भगति.
अपनी मुझे दिला दो शक्ति, मेरी बिगड़ी बना दो.
इन्दर आदी देवता मिल सारे, करे पुकार तुम्हारे द्वारे.
दुष्ट दत्य जब चढ़ कर आये, तुम ही खंडा हाथ उठाये
दासो को सदा बचाने आई, चमन की आस पुजाने आई।