Friday, November 25, 2022
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Shardiya Navratri 2022 Day 7 Maa kalratri: नवरात्र के सातवें दिन की जाएगी माता कालरात्रि की पूजा, जानें मंत्र और पूजा विधि

शारदीय नवरात्र के सप्तमी तिथि के दिन मां दुर्गा के सातवें सिद्ध स्वरूप माता कालरात्रि की विधि विधान से पूजा की जाती है. इस साल महासप्तमी तिथि 2 अक्टूबर 2022 को है. देवी कालरात्रि का पूजन रात्रि के समय बहुत शुभ माना जाता है. शुंभ, निशुंभ के साथ रक्तबीज का विनाश करने के लिए देवी ने कालरात्रि का रूप धारण किया था. इस दिन मां दुर्गा के दिव्य स्वरूप की पूजा करने से सभी प्रकार की बाधाएं दूर हो जाती हैं. साथ ही यह मान्यता भी प्रचलित है कि माता कालरात्रि की पूजा करने से सभी प्रकार की आसुरिक शक्तियों का विनाश हो जाता है.

माता कालरात्रि का स्वरूप

देवी कालरात्रि का रंग कृष्ण वर्ण है, इसलिए इनका नाम कालरात्रि है. गधे पर विराजमान देवी कालरात्रि के तीन नेत्र हैं. मां की चार भुजाओं में खड्ग, कांटा (लौह अस्त्र) सुशोभित है. गले में माला बिजली की तरह चमकती है. इनका एक नाम शुभंकरी भी है. भूत, प्रेत या बुरी शक्ति का भय, शत्रु और विरोधियों को नियंत्रित करने के लिए मां कालरात्रि की पूजा अचूक मानी जाती है.

मां कालरात्रि पूजा विधि

  • नवरात्र महापर्व के सप्तमी तिथि के दिन ब्रह्म मुहूर्त में स्नान-ध्यान करें और पूजा स्थल की अच्छे से सफाई करें.
  • इसके बाद मां को फूल, सिंदूर, कुमकुम, रोली, अक्षत इत्यादि अर्पित करें.
  • माता कालरात्रि को नींबू से बनी माला अर्पित करें और गुड़ से बनें पकवान का भोग लगाएं.
  • इसके बाद घी का दीपक जलाएं और मंत्रों का जाप करें. फिर मां कालरात्रि की आरती उतारें.
  • आरती से पहले दुर्गा चालीसा और दुर्गा सप्तशती का पाठ करना बिलकुल ना भूले.
  • आरती के बाद माता से अनजाने में हुई गलतियों के लिए क्षमा प्रार्थना करें.

मां कालरात्रि कथा

एक पौराणिक कथा के अनुसार, एक रक्तबीज नाम का राक्षस था. मनुष्य के साथ देवता भी इससे परेशान थे. रक्तबीज दानव की विशेषता यह थी कि जैसे ही उसके रक्त की बूंद धरती पर गिरती तो उसके जैसा एक और दानव बन जाता था. इस राक्षस से परेशान होकर समस्या का हल जानने सभी देवता भगवान शिव के पास पहुंचे. भगवान शिव को ज्ञात था कि इस दानव का अंत माता पार्वती कर सकती हैं.

भगवान शिव ने माता से अनुरोध किया. इसके बाद मां पार्वती ने स्वंय शक्ति व तेज से मां कालरात्रि को उत्पन्न किया. इसके बाद जब मां दुर्गा ने दैत्य रक्तबीज का अंत किया और उसके शरीर से निकलने वाले रक्त को मां कालरात्रि ने जमीन पर गिरने से पहले ही अपने मुख में भर लिया। इस रूप में मां पार्वती कालरात्रि कहलाई.

मां कालरात्रि की आरती 

कालरात्रि जय-जय-महाकाली ।
काल के मुह से बचाने वाली ॥

दुष्ट संघारक नाम तुम्हारा ।
महाचंडी तेरा अवतार ॥

पृथ्वी और आकाश पे सारा ।
महाकाली है तेरा पसारा ॥

खडग खप्पर रखने वाली ।
दुष्टों का लहू चखने वाली ॥

कलकत्ता स्थान तुम्हारा ।
सब जगह देखूं तेरा नजारा ॥

सभी देवता सब नर-नारी ।
गावें स्तुति सभी तुम्हारी ॥

रक्तदंता और अन्नपूर्णा ।
कृपा करे तो कोई भी दुःख ना ॥

ना कोई चिंता रहे बीमारी ।
ना कोई गम ना संकट भारी ॥

उस पर कभी कष्ट ना आवें ।
महाकाली मां जिसे बचाबे ॥

तू भी भक्त प्रेम से कह ।
कालरात्रि मां तेरी जय ॥

मां कालरात्रि आराधना मंत्र

‘ॐ जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।

‘दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तु ते।

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