आज से शारदीय नवरात्र का आरंभ हो चुका है. माँ की घटस्थापना के साथ माँ की अखंड ज्योति जलाकर माँ की पूजा अर्चना की जाती है. नवरात्रि के दौरान मां के 9 रूपों की पूजा- अर्चना की जाती है. नवरात्रि के प्रथम दिन मां के प्रथम स्वरूप मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है. आइये जाने माँ शैलपुत्री की पूजा विधि और किस कथा को सुनने या पढने से माँ का आशीर्वाद प्राप्त होता है –
माँ शैल पुत्री कौन है, कैसा है इनका स्वरूप
पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री रूप में उत्पन्न होने के कारण माता का नाम शैलपुत्री पड़ा. माता शैलपुत्री का जन्म शैल या पत्थर से हुआ इनकी पूजा करने से जीवन में अस्थिरता का नाश होता है. मां का एक नाम वृषारूढ़ा, और उमा नाम भी है. उपनिषदों में मां को हेमवती भी कहा गया है.
मां शैलपुत्री का स्वरुप बेहद शांत और सरल है. श्वेत वस्त्र धारण कर वृषभ की सवारी करती हैं. देवी के दाएं हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल सुशोभित है. ये मां दुर्गा का प्रथम स्वरूप हैं. मां शैलपुत्री को स्नेह, करूणा, धैर्य और इच्छाशक्ति का प्रतीक माना जाता है. शैलपुत्री समस्त वन्य जीव-जंतुओं की रक्षक भी हैं. माता शैलपुत्री ने घोर तपस्या करके ही भगवान शिव को प्रसन्न किया था. शैलपुत्री के अधीन वे समस्त भक्तगण आते हैं, जो योग, साधना-तप और अनुष्ठान के लिए पर्वतराज हिमालय की शरण लेते हैं. मां अपने भक्तों की हमेशा मनोकामना पूरी करती है.
माँ शैलपुत्री की पूजा विधि
- शारदीय नवरात्रि के प्रथम दिन शुभ मुहूर्त में घटस्थापना कर अखंड ज्योति प्रज्वलित करें और फिर भगवान गणेश का आवाहन करें. मां शैलपुत्री की पूजा में सफेद रंग की वस्तुओं का प्रयोग करें. सफेद मां शैलपुत्री का प्रिय रंग है. स्नान के बाद सफेद वस्त्र धारण करें.
- पूर्व या उत्तर दिशा में मुख करके पूजा की चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएं माँ दुर्गा की तस्वीर स्थापित करें. मां शैलपुत्री को कुमकुम, सफेद चंदन, हल्दी, अक्षत, सिंदूर, पान, सुपारी,लौंग, नारियल 16 श्रृंगार का सामान अर्पित करें.
- देवी को सफेद रंग की पुष्प, सफेद मिठाई जैसे रसगुल्ला भोग लगाएं. पहले दिन मां का प्रिय भोग गाय के घी से बने मिष्ठान उन्हें अर्पित करें. धूप, दीप लगाकर माँ शैलपुत्री के मंत्रो का जाप कर आरती करे.
- पूजा का समापन क्षमा प्रार्थना मंत्र से करें. मां से पूजा में कमियों और गलतियों के लिए माफी मांग लें. उसके बाद मनोकामना पूर्ति के लिए प्रार्थना करें.
मां शैत्रपुत्री के पूजा के मन्त्र
वन्दे वांच्छितलाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम्॥
वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥
या
शिवरूपा वृष वहिनी हिमकन्या शुभंगिनी।
पद्म त्रिशूल हस्त धारिणी रत्नयुक्त कल्याणकारीनी।।
पूजन के बाद पढ़े माँ शैलपुत्री की ये कथा
नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है. इनका वाहन वृषभ (बैल) है. शैल शब्द का अर्थ होता है पर्वत. शैलपुत्री को हिमालय पर्वत की बेटी कहा जाता है. इसके पीछे की कथा यह है कि एक बार प्रजापति दक्ष (सती के पिता) ने यज्ञ किया और सभी देवताओं को आमंत्रित किया. दक्ष ने भगवान शिव और सती को निमंत्रण नहीं भेजा. ऐसे में सती ने यज्ञ में जाने की बात कही तो भगवान शिव उन्हें समझाया कि बिना निमंत्रण जाना ठीक नहीं लेकिन जब वे नहीं मानीं तो शिव ने उन्हें इजाजत दे दी.
जब सती पिता के यहां पहुंची तो उन्हें बिन बुलाए मेहमान वाला व्यवहार ही झेलना पड़ा. उनकी माता के अतिरिक्त किसी ने उनसे प्यार से बात नहीं की. उनकी बहनें उनका उपहास उड़ाती रहीं. इस तरह का कठोर व्यवहार और अपने पति का अपमान सुनकर वे क्रुद्ध हो गयीं. क्षोभ, ग्लानि और क्रोध में उन्होंने खुद को यज्ञ अग्नि में भस्म कर लिया. इससे शंकर जी भी उद्वेलित हो गए और उन्होंने उस यज्ञ को भी तहस नहस कर दिया. फिर वही सती अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लीं.
मां शैलपुत्री की पूजा का महत्व
नौ दुर्गा के रूपों में प्रथम रूप मां शैलपुत्री का हैं. आज पुरे श्रद्धा और आस्था से मां शैलपुत्री का ध्यान करने से सारी मनोकामनाए पुरी होती है. उनकी कृपा से भय का नाश होता है, शांति और उत्साह की प्राप्ति होती है. वे अपने भक्तों का यश, ज्ञान, मोक्ष, सुख, समृद्धि आदि प्रदान करती हैं. उनकी आराधना करने से इच्छाशक्ति प्रबल होती है.