मधुर भंडारकर एक बार फिर महिला प्रधान फिल्म लेकर आए हैं. उन्होंने तमन्ना भाटिया स्टारर बबली बाउंसर का निर्देशन किया है, जो डिज्नी + हॉटस्टार पर चल रही है. इसमें साहिल वैद और सौरभ शुक्ला भी सहायक भूमिकाओं में हैं. बबली बाउंसर फतेहपुर बेरी में पली-बढ़ी एक लड़की की कहानी है, जिसे बाउंसरों का गांव भी कहा जाता है. टेस्टोस्टेरोन से भरे एक उद्योग में, बबली कैसे अपना स्थान बनाती है और एक महिला बाउंसर बन जाती है. यह देखने के लिए मूवी देखे.
क्या है फिल्म की कहानी
मधुर भंडारकर एक बार फिर महिला प्रधान फिल्म लेकर आए हैं. इस बार फीमेल बाउंसर की कहानी है. कहानी ऐसे गांव की है जहां के लड़के बाउंसर बनते हैं और वहां उन्हें ट्रेन करने वाले पहलवान जी यानि सौरभ शुक्ला की बेटी है बबली यानि तमन्ना भाटिया. बबली बड़े बड़े पहलवानों को चित कर देती है. उसे लड़कियों की तरह सजना संवरना पसंद नहीं है. घरवाले बबली की शादी करवाना चाहते हैं लेकिन बबली शादी नहीं करना चाहती लेकिन फिर कुछ ऐसा होता है कि बबली बाउंसर बनना चाहती है और बाउंसर बन जाती है. फिर बबली की जिंदगी में जो कुछ होता है वही कहानी है बबली बाउंसर की.
‘बबली बाउंसर’ का रिव्यू
तमन्ना भाटिया ने बबली के किरदार को जिया है. तमन्ना बिल्कुल बबली लगी हैं. हरियाणवी अंदाज को तमन्ना ने गजब का पकड़ा है. आपको देखकर लगता ही नहीं कि ये तमन्ना हैं. पूरी फिल्म में तमन्ना छाई हुई हैं और अपने दम पर वो फिल्म को खींच ले जाती हैं. एक्शन सीन हों या रोमांटिक या फिर इमोशनल. हर सीन में तमन्ना कमाल लगती हैं. अभिषेक बजाज तमन्ना के लव इंट्रेस्ट हैं और उन्होंने भी अच्छा काम किया है.
फिल्म के डायलॉग्स अच्छे हैं. हा वह थोड़े और अच्छे हो सकते थे और आपको पूरी फिल्म में बबली यह बात कहती दिखती है कि वह बहुत फनी है, लेकिन स्क्रीनप्ले और डायलॉग्स में कॉमिक वाला पंच कम लगता है. बबली बाउंसर’ की कहानी तेज रफ्तार से आगे बढ़ती है. वह हल्के-फुल्के अंदाज में आपको हंसाती भी है. कहानी कहीं भी खुद को आगे बढ़ाने के लिए समय बर्बाद नहीं करती है. फिल्म को करीने से शूट किया गया है, जिसमें हरियाणा और दिल्ली को बड़ी खूबसूरती से कैमरे में कैद किया गया है. गाने अच्छे हैं और कहानी को आगे बढ़ाने में मदद करते हैं. तमन्ना के एक्शन मोड वाले कुछ सीन्स बढ़िया बने हैं. तमन्ना ने इन सीन्स में जान भी खूब डाली है.
बबली के दोस्त कुकू के रूप में साहिल वैद ठीक हैं, लेकिन ऐसा लगता है कि उनके पास करने के लिए बहुत कुछ नहीं है. सौरभ शुक्ला स्क्रीन पर अच्छा काम करते ही हैं, हालांकि उन्हें इस फिल्म में थोड़ा और विस्तार दिया जा सकता था. अभिषेक सक्सेना, फिल्म में बबली के प्रेमी के रोल में हैं, वह थोड़ा और जोर लगा सकते थे.
मधुर भंडारकर ने अपनी पिछली फिल्मों से खुद के लिए ही बेंचमार्क बनाया है. उन्होंने फॉर्म नहीं खोया है. ‘बबली बाउंसर’ आपको अट्रेक्ट करती है. फिल्म में कुछ हल्के और मजेदार पल हैं, जो आपके करीब दो घंटे के सफर को बड़े मनोरंजक तरीके से बिताते में मदद करते हैं.
‘बबली बाउंसर’ जैसी फिल्में ओटीटी के लिए बेहतरीन फिल्में हो सकती हैं. सास बहू के धारावाहिक पीछे छूट चुके हैं. महिलाएं भी घर के बड़े टेलीविजन पर इंटरनेट के सहारे प्रेरक कहानियां तलाश रही हैं या फिर तलाश रही हैं ऐसी भावनाएं जिनमें उनके अपने एहसासों को खाद पानी मिले. इस लिहाज से फिल्म ‘बबली बाउंसर’ शुरू के आधे घंटे पकाने के बाद लाइन पर आ जाती है.