Monday, March 27, 2023
HomeDharmVat Savitri Vrat Katha 2022:  वट सावित्री व्रत के दिन सुने यह...

Vat Savitri Vrat Katha 2022:  वट सावित्री व्रत के दिन सुने यह कथा,जानें कैसे हुआ इस व्रत का शुभारंभ

वट सावित्री का व्रत इस बार 30 मई 2022, दिन सोमवार को रखा जाएगा | ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि के दिन वट सावित्री का व्रत रखा जाता है | वट सावित्रि व्रत महिलाओं के लिए बेहद खास होता है। सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए यह व्रत रखती हैं।

वट सावित्री व्रत की कथा

एक समय की बात है कि मद्रदेश में अश्वपति नाम के महान प्रतापी और धर्मात्मा राजा राज्य करते थे, उनके कोई संतान न थी | पंडितों के कथनानुसार राजा ने संतान हेतु यज्ञ करवाया | उसी के प्रताप से कुछ समय बाद उन्हें कन्या की प्राप्ति हुई, जिसका नाम उन्होंने सावित्री रखा समय बीतता गया और कन्या बड़ी होने लगी |

जब सावित्री को वर खोजने के लिए कहा गया तो उसने द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान को पति रूप में वरण कर लिया | इधर यह बात जब महर्षि नारद को मालूम हुई तो वे राजा अश्वपति के पास आकर बोले कि आपकी कन्या ने वर खोजने में बड़ी भारी भूल की है| सत्यवान गुणवान तथा धर्मात्मा अवश्य है, परंतु उसकी आयु बहोत कम है एक वर्ष बाद ही उसकी मृत्यु हो जाएगी |

नारद जी की बात सुनकर राजा उदास हो गए | उन्होंने अपनी पुत्री को समझाया, हे पुत्री! ऐसे अल्पायु व्यक्ति से विवाह करना उचित नहीं है, इसलिए तुम कोई और वर चुन लो। इस पर सावित्री बोली, ‘ तात ! आर्य कन्याएं अपने पति का वरण एक ही बार करती हैं अतः अब चाहे जो हो, मैं सत्यवान को ही वर रूप में स्वीकार करूंगी | सावित्री के दृढ़ रहने पर आखिर राजा अश्वपति विवाह का सारा सामान और कन्या को लेकर वृद्ध सचिव सहित उस वन में गए जहां राजश्री से नष्ट, अपनी रानी और राजकुमार सहित एक वृक्ष के नीचे द्युमत्सेन रहते थे | विधि-विधान पूर्वक सावित्री और सत्यवान का विवाह कर दिया गया |

वन में रहते हुए सावित्री अपने सास-ससुर और पति की सेवा में लगी रही | नारद जी के बताए अनुसार पति के मरण काल का समय पास आया तो वह उपवास करने लगी| नारद जी ने पति की मृत्यु का जो दिन बताया था, उस दिन जब सत्यवान कुल्हाड़ी लेकर लकड़ी काटने के लिए वन में जाने को तैयार हुआ , तब सावित्री भी अपने सास-ससुर से आज्ञा लेकर उसके साथ वन को चली गयी |

वन में सत्यवान ज्यों ही पेड़ पर चढ़ने लगा, उसके सिर में असह्य पीड़ा होने लगी | वह सावित्री की गोद में अपना सिर रखकर लेट गया |थोड़ी देर बाद सावित्री ने देखा कि अनेक दूतों के साथ हाथ में पाश लिए यमराज खड़े हैं | यमराज सत्यवान अंगुष्ठ प्रमाण जीव को लेकर दक्षिण दिशा की ओर चल दिए|

सावित्री भी यमराज के पीछे-पीछे चल दी | सावित्री को आते देख यमराज ने कहा, ‘हे पतिपरायण! जहां तक मनुष्य मनुष्य का साथ दे सकता है, वहां तक तुमने अपने पति का साथ दे दिया, अब तुम वापस लौट जाओ |’ यह सुनकर सावित्री बोली, ‘जहां तक मेरे पति जाएंगे, वहां तक मुझे जाना चाहिए, यही सनातन सत्य है | यमराज ने सावित्री की धर्मपरायण वाणी सुनकर वर मांगने को कहा

सावित्री ने पहला वर माँगा

सावित्री ने कहा कि मेरे सास-ससुर वनवासी और अंधे हैं, उन्हें आप दिव्य ज्योति प्रदान करें। यमराज ने कहा ऐसा ही होगा। जाओ अब लौट जाओ।
लेकिन सावित्री अपने पति सत्यवान के पीछे-पीछे चलती रहीं

यमराज ने फिर से उसे एक और वर मांगने के लिए कहा।

सावित्री ने दूसरा वर माँगा

सावित्री बोलीं हमारे ससुर का राज्य छिन गया है, उसे पुन: वापस दिला दें
यमराज ने सावित्री को यह वरदान भी दे दिया और कहा अब तुम लौट जाओ। लेकिन सावित्री पीछे-पीछे चलती रहीं।

यमराज ने सावित्री को तीसरा वरदान मांगने को कहा।

सावित्री ने तीसरा वर माँगा

सावित्री ने 100 संतानों और सौभाग्य का वरदान मांगा। यमराज ने इसका वरदान भी सावित्री को दे दिया।
सावित्री ने यमराज से कहा कि प्रभु मैं एक पतिव्रता पत्नी हूं और आपने मुझे पुत्रवती होने का आशीर्वाद दिया है। यह सुनकर यमराज को सत्यवान के प्राण छोड़ने पड़े। यमराज अंतध्यान हो गए और सावित्री उसी वट वृक्ष के पास आ गई जहां उसके पति का मृत शरीर पड़ा था।

सत्यवान जीवंत हो गया और दोनों खुशी-खुशी अपने राज्य की ओर चल पड़े।  सत्यवान के माता-पिता की आंखें ठीक हो गईं और उनका खोया हुआ राज्य वापस मिल गया | इससे सावित्री के अनुपम व्रत की कीर्ति सारे देश में फैल गई | और इसी दिन से प्रत्येक सौभाग्यवती नारी अपने सौभाग्य के लम्बी आयु के लिए तथा सुख समृद्धि और स्वास्थ्य की कामना में वट सावित्री व्रत रखती है |

 

 

 

 

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -

Most Popular

Recent Comments