कारगिल युद्ध में पकिस्तान का छक्का छुड़ा देने वाले विक्रम बत्रा की आज 47वीं जयन्ती है. उनके पराक्रम और शौर्य के लिए मरणोपरांत देश के सर्वोच्च सैन्य सम्मान परमवीर चक्र से नवाजा गया. पूरा देश आज नम आंखों से विक्रम की शहादत के लिए उन्हें याद कर रहा है. करगिल युद्ध के दौरान कैप्टन विक्रम बत्रा ने दो महत्वपूर्ण चोटियों को पाकिस्तानियों के कब्जे से छुड़ाया था. प्यार से लोग उन्हें ‘लव’ और ‘शेरशाह’ बुलाते थे. उन्होंने युद्ध में जाने से पहले अपनी माँ से कहा था कि या तो तिरंगे को लहराकर आऊंगा, या फिर तिरंगे में लिपटकर,आइये जाने उनके बारे में
विक्रम बत्रा जीवन परिचय
कैप्टन विक्रम बत्रा का जन्म 9 सितंबर 1974 को हिमाचल प्रदेश के पालमपुर जिले के घुग्गर में हुआ था. उनके पिता का नाम जीएम बत्रा और माता का नाम कमलकांता बत्रा है. माता कमलकांता की श्रीरामचरितमानस से गहरा लगाव था. इसलिए उन्होंने अपने जुडवे बच्चो का नाम लव-कुश रखा. लव यानी विक्रम बत्रा और कुश यानी विशाल बत्रा. विक्रम बत्रा और उनके भाई का पहले डीएवी स्कूल, फिर सेंट्रल स्कूल पालमपुर में दाखिल करवाया गया.
पिता से बचपन से ही देश प्रेम की कहानियां सुन और सेना छावनी में स्कूल होने से सेना के अनुशासन को देख विक्रम में स्कूल के समय से ही देश प्रेम प्रबल हो उठा. विक्रम शिक्षा के क्षेत्र में ही अव्वल नहीं थे, बल्कि टेबल टेनिस में अव्वल दर्जे के खिलाड़ी होने के साथ उनमें सांस्कृतिक कार्यक्रमों में बढ़-चढ़कर भाग लेने का भी जज़्बा था.
आरंभिक पढाई पुरी करने के बाद विक्रम चंडीगढ़ चले गए और डीएवी कॉलेज चंडीगढ़ में विज्ञान विषय में स्नातक की पढ़ाई शुरू कर दी, कालेज की पढाई के दौरान ही वह एनसीसी के सर्वश्रेष्ठ कैडेट चुने गए और उन्होंने गणतंत्र दिवस की परेड में भी भाग लिया. उन्होंने सेना में जाने का पूरा मन बना लिया और सीडीएस की भी तैयारी शुरू कर दी. हालांकि विक्रम को इस दौरान हांगकांग में भारी वेतन में मर्चेन्ट नेवी में भी नौकरी मिल रही थी, लेकिन देश सेवा का सपना लिए विक्रम ने इस नौकरी को ठुकरा दिया.
कारगिल युद्ध और विक्रम बत्रा
विक्रम ने सीडीएस परीक्षा उत्तीर्ण कर 6 दिसम्बर 1997 को जम्मू के सोपोर नामक स्थान सेना की 13 जम्मू-कश्मीर राइफल्स में लेफ्टिनेंट की पोस्ट पर ज्वाइन हुए. उसके बाद 1 जून 1999 को उनकी सेना टुकड़ी को करगिल युद्ध में भेजा गया. हम्प व राकी नाब स्थानों को जीतने के बाद विक्रम को कैप्टन बना दिया गया. इसके बाद श्रीनगर-लेह मार्ग के ठीक ऊपर सबसे महत्त्वपूर्ण 5140 चोटी को पाक सेना से मुक्त करवाने का जिम्मा भी कैप्टन विक्रम बत्रा को दिया गया. बेहद दुर्गम क्षेत्र होने के बावजूद विक्रम बत्रा ने अपने साथियों के साथ 20 जून 1999 को सुबह तीन बजकर 30 मिनट पर इस चोटी को अपने कब्जे में ले लिया. 5140 चोटी पर खड़े होकर कहा था ‘ये दिल मांगे मोर।’
घायलवस्था में भी लड़ते रहे विक्रम बत्रा
जब चोटी नंबर 5140 कब्जे में आ गई तब विकम की सेना ने चोटी नंबर 4875 को भी कब्जे में लेने का अभियान शुरू कर दिया. इसकी बागडोर भी कैप्टन विक्रम को ही दी गई. जान की परवाह न करते हुए लेफ्टिनेंट अनुज नैय्यर के साथ कैप्टन बत्रा ने 8 पाकिस्तानी सैनिकों को मौत के नींद सुला दिया. मिशन लगभग पूरा ही होने वाला था तभी अचानक विक्रम बत्रा के जूनियर ऑफिसर लेफ्टिनेंट नवीन के पास एक विस्फोट हुआ, नवीन के दोनों पैर बुरी तरह जख्मी हो गए विक्रम उन्हें बचाने के लिए पीछे घसीटने लगी की तभी उनकी छाती में गोली लगी और 7 जुलाई 1999 को भारत का ये शेर शहीद हो गया. विक्रम बत्रा को उनकी बहादुरी के लिए मरणोपरांत परमवीरचक्र से सम्मानित किया गया. पकिस्तान में उन्हें शेरशाह नाम से भी बुलाया जाता था.
विक्रम और डिम्पल की अमर प्रेम कहानी
विक्रम का कालेज के दौरान अपनी क्लास मेट डिंपल से प्रेम करते थे और करगिल युद्ध से वापस आने के बाद उनसे शादी करने वाले थे. लेकिन जब वो करगिल से वापस आए तो तिरंगे में लिपटकर. लेकिन उन दोनों की प्रेम कहानी यही खत्म नहीं हुई उनकी प्रेयसी डिंपल ने आजीवन शादी न करने का फैसला किया.
1995 में चंडीगढ़ की पंजाब यूनिवर्सिटी में विक्रम और डिंपल की पहली मुलाकात हुई थी. उन्होंने अपने जीवन के चार साल के समय में एक दुसरे के साथ काफी समय बिताया, उस रिश्ते के एहसास को शब्दों में बयां करने की कोशिश में आज भी डिंपल की आंखें भर आती हैं. एक इंटरव्यू देते हुए डिंपल ने बताया था कि जब एक बार उन्होंने विक्रम से शादी के लिए कहा तो विक्रम ने चुपचाप ब्लेड से अपना अंगूठा काटकर उनकी मांग भर दी थी.